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________________ उसका नायक था सवारनायक मावण। उन्होंने दोनों को महाराज का सन्देश : पहुँचाया। सन्देश मिलते ही सारी सेना आठों दिशाओं में बँटकर तेजी से चल पड़ी। ___यह देख कोंगाल्वों ने समझा कि पोसल सेना तितर-बितर हो गयी। इससे उन्हें बहुत खुशी हुई, परन्तु उनकी यह खुशी बहुत समय तक नहीं रही। देखते-ही-देखते जनकी दो टुकड़ियों के पोछे से पोय्सल सेना हमला करती हुई आगे जा बढ़ी। युद्ध की गति उल्टी-सीधी हो गयी। युद्ध की रीति के बदलने से कोंगाल्व टक्का-बक्का रह गये। हालत ऐसी हो गयी कि युद्ध इधर से शुरू करें या उधर से, यहाँ करें या यहाँ। वे दिङ्मूढ़-से हो गये। इस बार पोसनों का हौसला ऊँचा रहा, उनमें उत्साह की लहर दौड़ गयी। दो हिस्सों में बँटी कौंगाल्चों की सेना पांय्सलों के घेरे में आ गयी। लौहकवच और शिरस्त्राण से सजी पीसल अश्वसेना को पीछे हटाना कोंगाल्व तीरन्दाज़ों में न हो सका। उनके सारे तीर लोहकवच से लगते और टूटकर ज़मीन पर जा गिरते । पोयसल अश्वसेना हावी हो गयी। कोंगाल्न मना दिङ्मूढ़ हो गयी और पोयसल अश्वसेना के पदाघात से रौंद दी गयी। राजेन्द्र प्रिथुवी ने अपनी सेना की हालत पहाड़ पर से देखी। वहीं में उसने अपनी राशक रोना को पीछे हटने का आदेश दिया। अपने चोद्धाओं को उत्साह से भरनेवाले कोंगावों के युद्ध के नगाड़े शान्त हो गये। कोंगाल्व सैनिकों के दिल टूट गये। हार को निश्चित समझकर भी वीरगति के इच्छुक कोंगाल्न सैनिक लड़ते हुए शहीद हो गये। जिन्हें जीने की चाह थी ये लुक-छिपकर भाग गये। विट्टिदेव विजयी हुए। घोष के साथ बाजे बज उठे। उससे दसों दिशाएँ याप्त हो गयीं। युद्धभूमि में शार्दूलपताका फहराने लगी। पोसल सैनिक भी विजयघोष करने लगे। पुनीसमय्या, सिंगिमच्या, मंचिदण्डनाथ-ये सब सन्निधान के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए पहाड़ की ओर देख रहे थे। सन्निधान के बदले सवारनायक मावण पहुँचा। तीनों दण्डनायकों को कुछ दूर ले जाकर उनसे कहा, “सन्निधान केन्द्र शिविर में हैं। सैनिकों को धीरे-धीरे लौटने की आज्ञा देकर आप लोग मेरे साथ शीन चलें।" उसके कहने के ढंग से लगता था कि कुछ घबराने जैसी बात हो गयी है। मंचिदण्डनाथ ने धीरे-से पूछा, "क्या बात है?" मायण ने कहा, "भाग्य की बात है कि ऐसी कोई अनहोनी बात नहीं हुई। आज अगर बम्मलदेवी न होती तो पता नहीं क्या होता? अब चलिए, देर न करें। हमारी जीत की खबर सुनने के लिए सम्निधान और पट्टमहादेवी प्रतीक्षा में हैं।'' "हम सब स्वयं सन्निधान के आने की प्रतीक्षा में थे।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दा :: 449
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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