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________________ "अब वे आने की दशा में नहीं हैं। चलिए । योद्धाओं को जल्दी सूचित कर दीजिए। मैं आपकी प्रतीक्षा किये बिना पहले ही चल रहा हूँ। सैनिकों में घबराहट न आने पाए।" उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना मायण में अपने घोड़े पर सवार हो एष्ट्र लगायी। घाड़ा आसमान से बातें करने लगा। पुनीसमव्या ने सैनिकों से कहा, "सैनिको! आप सबने अपने प्राणों की आशा छोड़कर जमकर युद्ध किया और राष्ट्र को विजय से विभूषित किया। महाप्रभु ने आपके इस साहसपूर्ण कार्य की हार्दिक प्रशंसा करते हुए यह सन्देश भेजा है कि अब आप लोग केन्द्र शिविर की ओर लौट पड़ें। वहाँ वे प्रत्यक्ष आप लोगों से मिलेंगे और स्वयं बधाइयाँ देंगे। जल्दी आने के लिए उन्होंने हमें आदेश भेजा है। अतः हमारे अश्वदत की प्रधान टुकड़ी यहाँ रहकर सतर्क हो निगरानी रखें। यह दकड़ी पटवारी वोकण के अधीन रहेगी।' सैनिकों को यों आदेश देने के बाद पटवारी बोकण को जो बनाना था उन्हें बताकर, सिंगिमव्या और मंचिदण्डनाथ के साथ पुनीसमच्या कंन्द्र शिविर की ओर चल पड़ा। महाराज के हरे के बाहर के घर में चारों और पहरदार सशस्त्र पहरा दे रहे धे । एक सिपाही इन दण्डनायकां के आने की खबर लेकर अन्दर गया और समाचार सुनाकर अनुमति पाकर लौट आया। बाद में तीनों टण्डनाथ अन्दर गये। महाराज बिदिव पलंग पर लटे थे। पटरानी शान्ततंदी पलंग के सहार एक दूसरे आसन पर बैठी थीं। वम्मालदेवी वहाँ से कुछ दूर पर एक दूसर आसन पर बैठी थी। चट्टता तम्बू के हो अन्दर के दरवाजे पर खड़ी थी। चारुकीर्ति पण्डित के वैद्यवृत्ति छोड़कर राज्य से चले जाने के बाद, जगदल सोमनाथ पण्डित राजमहला के वैद्य बन गये थे। वे बुद्ध शिविर में ही रहे, इसलिए महाराज को ठीक वक्त पर आवश्यक चिकित्सा मिल गयी थी। वे भी वहीं एक दूसरे आसन पर विराज रहे थे। इंरे के अन्दर प्रवेश करते ही तोनों ने झुककर प्रणाम किया। बिट्टिदेव ने प्रसन्न मुद्रा लाने का प्रयत्न कर उन्हें इशारे से बताया कि बैलें, और शान्तला की ओर देखा। शान्तला ने कहा, "दण्डनाथ पुनीसमय्या जी, हमारी विजय का समाचार मायण से मिल गया हैं। पूर्व सूचना के अनुसार, सन्निधान को बहीं आप लोगों से मिलने के लिए पधारना चाहिए था, परन्तु अब आप लोगों को बह सन्तुष्टि नहीं दे सके। यदि वह पल्लब राजकुमारी बम्मलदेवी आज न होती तो हम सन्निधान के सन्दर्शन भाग्य को भी खो बैठते। पोयसल पट्टमहादेवी के सुहाग सिन्दूर को आज उन्होंने बचा लिया । हम उनको अपनी कृतज्ञता किन शब्दों में 150 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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