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________________ न खुले-इसीलिए अपनी सारी शक्ति लगाकर उस मँह के दाँत मैंने तोड दिये हैं। मेरे मन में कभी भी तम्हारे बारे में ऐसे विचार तब नहीं आये। फिर भी जिससे मैंने प्रेम किया उसने यह बात कही है। उसकी तरफ़ से मैं क्षमा माँगता हूँ। वह एक दुष्ट स्त्री है। उसकी बातों की कोई कीमत नहीं। सचमुच बहुत दिन मैं जीवित नहीं रहूँगा। वास्तव में मुझे जीन की अभिलाषा भी नहीं है। इसलिए मैं महाराज बनकर नहीं, भाई होकर बहुवचन का प्रयोग नहीं कर रहा हूँ जो रूढ़िगत है। मों, तुम इस अविवेकी बेटे को क्षमा कर देना।'' कहते हुए बल्लाल ने अपना सिर माँ की गोद में रख दिया। उनकी पीठ पर हाथ फेरती हुई माँ शून्य की ओर देखती रही, कुछ बोली नहीं। पण्डितजी आये। काढ़ा दिया गया। बाद में बिट्टिदेव बाहर चले आये। दो-तीन दिन की चिकित्सा के बाद पट्टपहादेवी पञ्चलदेवी कुछ सुधर गयीं। झड़े दाँत तो फिर उग नहीं सकते थे। मगर माथे पर के घाव को भरना था। बल्लाल की हालत दवा-दारू और चिकित्सा-उपचार आदि से भी सुधरी नहीं। बड़ बिगड़ती ही चली गयी। सूजन भी बढ़ती ही गयी। उदयादिस्य और डाकरम के पास भी खबर भेज दी गयी थी सो सभी जन दोरसमुद्र आ गये थे। इसके बाद बहुत समय तक इल्लाल ने पण्डितजी की दवाओं का खर्च नहीं किया। खर संवत्सर में ही बल्लाल ने अपने पार्थिव शरीर को त्यागकर जिस शान्ति को बहुत समय से चाहा था, उसे पा लिया। राजधानी शोक-सागर में डूब गयी। सारा राजमहल दुःखी होकर रो उठा । महाराज बल्लाल के शव का दाह संस्कार राजोचित ढंग से किया गया। - पालदेवी मौन हो आँसू बहाती रही। छाती पीट-पीटकर वह अपने दुर्भाग्य के कारण खुद को कोसती रही। उसका अन्तरंग यही कह रहा था कि उसके ही कारण यह सब हुआ। पैंतीस साल के जवान बल्लाल का कुछ ही वर्षों का राज्य काल इसी तरह समाप्त हो गया। राजा बिट्टिदेय पट्टाभिषिक्त हुए। साथ ही शान्तलदेवी पट्टपहादेवी यनीं । अय तक पट्टमहादेवी शान्तलदेवी के चौथे गर्भ के तीन महीने हो चुके थे। इतनी अल्पआयु में ही, महाराज बल्लाल का निधन हो जाने के कारण सम्पूर्ण पोप्सल राज्य शोक-सन्तप्त हो गया। बुढ़ापे में मरियाने दण्डनायक इस आघात को सह नहीं सके। उनकी पत्नी और वे स्वयं, जब से भावी महाराज बल्लाल राजकुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह करा देने के बारे में विचार करने लगे पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 347
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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