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________________ थे, तब से लेकर नालाल के इस अकाल मरण तक की सारी घटनाओं में वे पूर्णतया परिचित थे। यदि व पालदेवी के पिता न हुए होत ता पता नहीं क्या करतं! अपनी तीनों बेटियों में से कोई भी अपने जन्ममुहूत या सुहाग के बल पर अपने पति को न बचा पाधी। इसके पाने वही हुआ कि उन्होंने तीन बेटियों को इसीलिए: जन्म दिया जिसस ने पोत्सल भहारान की आहुति लें, इसका उन्हें गहरा द:ख हुआ; इसी चिन्ता में घुलने लगे। आः यह दशा देखने के लि!, इसका वीजारोपण करनवाली उनकी पत्नी न रही और उन्हें अकेले ही जीधित रहना पड़ा। वे बहुत शोकाकुल हो उठे : पदमहादेवी केलगत्वरसी ने कितने प्रेम से मुझे भाई से बदकर भाना और मुझे बड़ा बनाया। उनके इस उपकार के बदले मैंने उनके इस राजवंश को अकाल मृत्यु के लिए भेंट कर दिया । मैं किसी भी तरह की क्षमा का पात्र नहीं। फनी के स्वभाव से परिचित होकर भी मैंने यह विचार नहीं किया कि इन बेटियों का स्वभाव भो माँ को तर हो तो इनसे विवाह करने वाले की दशा क्या होगी। बहुत जल्दबाज और बड़बनाने वालियों के साथ जीना बहुत कठिन होता हैं। यह हमारी पी, ही अब तो वह कंवल पी ही है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि उसकी जीभ इतनी पैनी हो जाएगी। बीच में दो-तीन बार मैंने उसे हितवचन भी कहे. उन बातों का भी मूल्य न रहा! इस हालत में उसके व्यवहार को समझते कुछ भी नहीं सूझा। अब माथा टोकने वा छाती मारकर रोने सं भी क्या मायदा? इसने जो वांव किया उसका फल इन दोनों को भी भोगना पड़ा। घाँटयों का यह दःख रखते हुए अब क्या शान्ति से मर सकूँगा' पतिविहीन थे बच्चियाँ अब यहाँ गौरव के साथ कैसे जी सकेंगी? उम गौरः के योग्य हो तभी तो गौरव मिलेगा। अब 'भुगतें अपने भाग्य। मैं भला क्यों इस चिन्ता में पई? यों सोचकर उन्होंने तीनों को वहीं छोड़कर चल देने का निर्णय किया 1 चापनदेवी और घोप्पदेनी ने साथ ले चलने का आग्रह किया लेकिन व्यर्थ रहा। साथ न ले जाएँगे ता दारव्य से बँधाये गये तालाब में कूदकर मरने की बात कहकर पद्मालदेवी जिद कर बैठी। उस अकेली को ही क्यों, यो सांचकर वे तीनों को लेकर अपने सिन्दगर वरले गये। शान्तलदेवी और पाचलदेवी दोनों में बहुत सभगाया और कहा कि वहीं रही आयें परन्तु यहां रहने पर पुरानी स्मृतियाँ वार-बार आती हैं जिसे सहना बहुत कष्टदायक होता है-वही बहाना बनाकर पद्मनदेवी पिता के साथ चली गयी। परन्तु इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि वह यह सोचती रही हो-“पट्टानी बनकर यह इटलाती रहे और मैं इसे देखने के लिए यहाँ बैठी रहूँ?" पण्डित वारुकीर्ति जी ने, क्षणिक स्वार्थ के लिए लोगों में जहर बाँटनेवालों के इस समाज को देखकर असह्य-भाव से, उदासीन हो ऐसे स्वार्थिया की शुश्रूषा 3SA :: पट्टमहादेवी शान्जला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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