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________________ कोई प्रयोजन नहीं। हमारी सारी शक्ति का विनियोग अब तक हो सका है। हमें मृत्यु से कोई भय नहीं। शायद यही हमारे लिए मुक्ति का मार्ग है।" पण्डितजी ने नब्ज देखते हुए कहा, “भन्निधान ऐसी बात करेंगे तो सब पर क्या बीतेगी?" फिर पलक खोलकर देखा, तलुए की खरोंचकर देखा, उँगलियों के जोड़ की हड्डी से घुटने पर मारकर देखा, पैरों पर की सूजन को देखा । फिर अपनी दवा की पेटी खोली। एक-दो गोलियां निकालकर खिलायीं। एक बुकनी निकालकर उसे सूंघने को कहा, सँघाया । बल्लाल ने किसी का विरोध नहीं किया। तात्कालिक चिकित्सा करने के बाद एक काढ़ा तैयार कर ले आने की बात कहकर पण्डितजी उठ खड़े हुए। _ 'पण्डितजी, आपके लिए वह वृथा श्रम है। दवा व्यथं है। आपका मन दुखे नहीं, इसलिए सब सह लेता हूँ। सबका सेवन कर लेता हूँ। मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरा पैर सृजता जा रहा है। मुझे अपने पर छोड़ दीजिए, यही मेरी प्रार्थना है।' बल्लाल ने कहा। "सन्निधान को अन्यथा नहीं सोचना चाहिए। चाहे किसी भी कारण से हो, चिकित्सा रोकनी नहीं पढ़ली 1 रोक दें तो सीखी विद्या के प्रति द्रोह होता है।" पण्डितजी बोले। "आपकी इन्छा। लेकिन मुद्दो निश्चित रूप से मालूप है कि क्या होगा 1 कुछ चिन्ता की बात नहीं। विदेिव पण्डितजी के साथ ही बाहर आये और उन्हें पद्मलदेवी के विधामकक्ष में ले गये। उसके लिए आवश्यक चिकित्सा की गयी। और फिर पण्डितजी काढ़ा तैयार कर ले आने के लिए जल्दी-जन्दी धर दौड़े गये। विहिदेव फिर माँ के साथ आ गये। बल्लाल की आँखों से अश्रुधारा बह रही थीं। एचलदेवी अपने आँचल से उसे पोछती हुई बोलीं, ''बेटा, तुम्हें आँसू नहीं बहाना चाहिए। तम मूर्धाभिषिक्त महाराज हो। सब ठीक हो जाएगा।" ___गा, मेरे बदले छोटे अप्पाजी का जन्म पहले होता तो अच्छा होता। मैंने अपने समस्त जीवन को विचार करके देख लिया है। मेरी जल्दबाज़ी और अविवेक--ये दोनों मेरे जीवन को जलानेवाली आग बन गये हैं। फिर भी आप सब लोगों ने मुझे क्षमा दान देकर मुझे सुखी बनाने के लिए पूरा सहयोग दिया। मुझसे इस राष्ट्र का कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सका। छोटे अप्पाजी, राष्ट्र की जिम्मेदारी तुम पर है। भगवान तुम्हें चिरायु बनाएँ । मेरी मृत्यु इतनी जल्दी आ जागगी इसकी सम्भावना नहीं थी। मैं ही अपनी आयु कम करके, उसे मैं तुम्हें निर्मल मन से धेयपूर्वक दे रहा हूँ। मुझे दुनिया से उटा देने और स्वयं गद्दी पर बैट जाने के इगटे से षड्यन्त्र चलाने आदि नीच और हेय बातें कहनेवाला यह चाण्डाल मुँह फिर SH :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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