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________________ कं, किसी दूसरी तरह का अन्तर ही नहीं रहा। बृहदाकार याहुवली और शिवगंगा . के शिवजी के अभिषेकों में एक समान आनन्दानुभव हुआ। उस समय छोटे अप्पाजी ने जो धर्म जिज्ञासा तुम्हारे गुरुजी से की थी उस सबका उसने मुझं परिचय दिया। भगवान हमारी कल्पना के अनुरूप हो जाते हैं परन्तु उस कल्पना में परिशुद्ध भाव होना चाहिए। इस बात का अच्छा अनुभव हमने पाया।" एचलदेवी ने कहा। "उसी दिन सन्निधान और ग़जा दोनों के प्राण बच गये। इतना ही नहीं, क्षण-घर में बिजय भी प्राप्त कर ली थी। वे भी उसी दिन सामेश्वर के मन्दिर में शिवजी की पूजा में भाग लेन गये थे। सुना कि एक दुश्मन ने प्रसाद में जहर मिलाकर सन्निधान और गजा को मार डालना चाहा या। स्वयं सहर पीकर दुनिया का उद्धार करनेवाग्ने महादेव हैं न शिवजी! उन्होंने इन दोनों को बचा लिया। आपकी शिवगंगा की शिवपूजा के आनन्द के अनुभव का ही फल आज हमें प्राप्त हा हैं।" शान्तला ने कहा। "तो क्या, हमारी तीर्थयात्रा के आरम्भ होने के बाद फिर से युद्ध हुआ?" पलटेबी ने पूछा। 'हाँ।" 'बनुगोल में भी इस सम्बन्ध में किसी ने कुछ कहा नहीं!" "जहाँ बुद्ध हुआ, उस स्थान को छोड़कर अन्यत्र कहीं उसका प्रचार नहीं किया गया था। विजयोत्सव के सन्दर्भ में यदि कोई बेलुगोन से आये होंगे तो उनसे मालूम किया जा सकता था। सो भी उनकं लौटने पर न?" 'हमारी चट्टलदेवी को आने दीजिए। वह वहाँ थी, इसलिए इस सम्बन्ध में वह अधिक जानती है। और, वह बहुत रोचक ढंग से सब बताती है।" इसके बाद उदयादित्य के बार में बात शुरू हुई। "का बहुत कम बोलता है उसकी कई आकांक्षाएँ हैं परन्तु कहते उसे संकोच होता है। यों वह अन्दर-ही-अन्दर दुःख का अनुभव करता रहता है। वह ऐसा सोचता है कि उसे सत्र कमलार मानते हैं और अनुभवनहीन तथा भाला सपझकर छोड़ देते हैं। किसी तरह का इत्तरदायित्व उसे नहीं सौंपते । त्यागी विरक्त के लिए तो अन्तमखी होना ठीक है, परन्तु यौवन की देहरी पर खड़ा व्यक्ति अपनी आन्तरिक चंदना को प्रकट न करके अन्तर्मुखी प्रवृत्ति को बढ़ाता रहे तो उससे हानि ही होगी। उसे किसी दायित्वपूर्ण काम पर लगाते रहे हैं या नहीं?" एचलदेवी ने पूछा। 'नहीं, लेकिन अब उनकी अन्नमुखी प्रवृत्ति दूर हो रही हैं और अब यह जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने की अभिलाषा प्रकट कर रहे हैं। उन्हें यादवपुरी के 351 :: पापहावी शान्तला : भाग हा
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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