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________________ तीर्थयात्रा सुगमरूप से सम्पन्न हुई होगी। कहाँ-कहाँ हो आयीं" शान्तलदेवी ने पूछा। एचलदेवी ने पूरा विवरण विस्तार के साथ सुनाया और कहा, "मेरे लिए और कोई बांछा नहीं रही है। आप सन्ध लाग एक परिवार बनकर जीवन निवाह करें यही मेरी आकांक्षा हैं।" "आपकी आशाएँ आप ही के आशीर्वाद के बल से सफल बनें-यही चाहती हूँ। मुझसे परिवार की एकता टूटने का कोई कार्य न घटे यह शक्ति मुझे आपके स्नेह से प्राप्त हो, वही आशीष दीजिए।" कहती हुई एचनदेवी के पैर छूकर | शान्तलदेवी ने प्रणाम किया। "इसका मतलब...." 'मतलब यह कि आपके आशीवाट का बल रहा तो ऐसा मौका आने पर भी असूवारहित संयमयुक्त जीवन व्यतीत कर सकेंगे।" 'तुम्हें किसी के आशीवाद की जरूरत ही नहीं। अन्दर बैठा हुआ दर्द कभी न कभी अनजाने ही आपसे आप बाहर प्रकट हो ही जाना है। तुम्हारी बात से लो मुझे वही लगता है। तुम्हारे जोर देकर कहने का ढंग देखकर लगता है कि किसी और की तरफ से इस तरह का काम हुआ है जिससे तुम्हारे मन को दुःख पहुंचा है। ऐसी क्या बात हुई ?" एचलदेवी ने पूछा । "अब सब ठीक हो गया हैं। इतना ही काफी है।" "ऐसा नहीं, बात मुझे पालूम ही लो अच्छा होगा न?" "इस बात को महाराज या राजा के आने पर उनसे पूछ लें तो उचित होगा।" "ठीक है। तुम पर जोर जबरदस्ती नहीं। सुना कि तुम बेनुगोल हो आयी" "हाँ, सन्निधान की युद्ध जाना पड़ा, युद्ध में विजय प्रदान करने की प्रार्थना करने गयी थी।" "एक विचित्र बात सुनो। बात्रा से लौटते-लौटते शिवरात्रि नजदीक पड़ी। छोटे अप्पाजी ने तुम लोगों के साघ शिवगंगा में जो समय व्यतीत किया था उसका वर्णन करते-करते तब वह अघाता नहीं था। मुझे भी लगा कि शिवरात्रि को वहीं रहकर फिर आगे बढ़ें। शिवगंगा के धमंदी ने हमारी काफ़ी आवभगत की। उन्हें वह पुरानी बात याद हो आयी जब तुम लोग वहाँ गयी थीं। उन्होंने कहा, 'उत्तम समय पर सन्निधान का आना हुआ है। राष्ट्र और राजघराने के श्रेय के लिए आज रात भर चारों याम पूजा-अर्चा की व्यवस्था की जाएगी। हमने भी इस पूजा-अर्चा में भाग लिया और रात्रि जागरण रखा। वे बहुत खुश हुए। शिवजी की इस वैभवपूर्ण पूजा को देखकर. हमें भी बहुत आनन्द हुआ। उस बृहदाकार बाहुबली के महामस्तकाभिषेक और इस शिवजी के अभिषेक दोनों में, सिवाय उस वृहदाकार पष्टभादेवी शान्तला भाग दो :: 59
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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