SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को वह करेगा।" गालब्बे ने कहा। "तो क्या मेरा शील बिगाड़ना भी उसकी मर्जी थी?" "मैं एक साधारण इसका क्या उत्तर दे सकती हूँ? कहने के लिए तुम शीलभ्रष्टा हो । दामब्बे भी शीलभ्रष्टा है। वह चक्की चलाती जेल में पड़ी है। और तम राजमहल में गौरव के साथ काम कर रही हो। इस फ़र्क की दृष्टि में रखकर, उत इंश्वर की मर्जी क्या है इसे समझना होगा। हाँ, अब उठो, तैयार हो जाओ, अब तुम दोनों मेरे हाथ में फँसे हो। तुम दोनों को साथ बैठाकर खिलाऊंगी। बगीचे में जाकर दो अच्छे केले के पत्ते कार लाओ। उठो।'' कहकर गालचे चली गयी। "हमें साथ बैलाकर भोजन! हे ईश्वर, ग केही सुशी की है में भी जो लभ्य नहीं वह मुझे मिले?" कहती हुई केलं के पत्ते काट लाने के लिए चट्टला बगीचे में चली गयी। शान्तला के साथ आये विष्टिगा को देखकर चलदेवी ने कहा, "यह कितना बड़ा हो गया हैं! बढ़ने में इसकी तीव्र गति है उसके पिता की तरह ।..." "यह सब तो ठीक है, परन्तु एक क्षण के लिए भी यह चुप नहीं रहता। ऐसा कोई काम नहीं जिसमें यह हाथ नहीं डालता हो । कोई कुछ करे तो खुद भी वह काम करने के लिए उतावला हो उठता है! उसकी माँ ने कहा था कि उसे अच्छा दण्डनायक वनाना है। यह कहना अब काटन हो गया हैं कि वह क्या बनेगा। इसकी प्रवृत्तियों को देखकर मेरे मन में कई तरह की समस्याएँ उठती थी तो एक बार मैंने राजपरिवार के ज्योतिषी से पूछा । उन्होंने कहा, 'इसकी जन्मपत्री में कुल उच्च और लग्न केन्द्र स्थान में है। इसलिए कोई विद्या ऐसी नहीं जिसमें यह पक्का और निष्णात न हो। पंचमहापुरुषयोगों में एक रुचकयोग इसे है। इस कारण इसकी कई बातों में रुचि है, और उन सभी बातों में वह निष्णात भी होगा। इस विषय में चिन्तित होने की ज़रूरत नहीं। कुज शौर्य, निष्टात और वाक आदि स्थानों का अधिपत्ति है, इसलिए यह अच्छा बक्ता, महापराक्रमी, कार्यदक्ष बनेगा।' ज्योतिषी के यह बताने पर मुझे कुछ सान्त्वना मिली।'' शान्तलदेवी ने कहा । ___ "यदि यह ऐसा बनेगा तो इसके मां-बाप की आशा सफल होगी। इसे से गुणसम्पन्न होकर बढ़ते हुए देखने का भाग्य मुझे मिलेगा या नहीं, मालूम नहीं। इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही मैंने इसे तुम्हें सौंपा है।" एचलदेवी ने कहा। “आप भी इसे इस तरह का बना देग्नें-यही हमारी आकांक्षा है। आपकी 352 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy