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________________ और उस न्याय-विचार के बाद, सभी लोगों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा था। स्वयं पिरियरसी जी ने ही यह राय प्रकट की थी। उस समय किस ढंग से न्याय-विचार किया गया था सो उन्हीं से पूछ लें। इस तरह का न्याय-निर्णय राज्य में हमसे भी मिलने का विश्वास प्रजा में निश्चित उत्पन्न होगा। अतः सन्निधान से मेरी या विनती है कि इन लोगों का न्याय-विचार सार्वजनिकों के ही सामने हो।" "उस समय पिरियरसी जी परिस्थितिवश अज्ञातवास की अवस्था में रहीं। उनकी अनुमति प्राप्त करके ही खुले तौर पर न्याय-विचार करने का आयोजना किया गया था। इसके अलावा, तब अन्य राष्ट्र के गुप्तचर के विषय में न्याय विचार करना था। उस समय का प्रसंग ही अलग है। अब की स्थिति और विषय भी अलग है। प्रस्तुत विषय से सम्बद्ध सभी व्यक्ति अपनं ही राज्य के हैं। वहाँ अज्ञातवास में पिरियरसी जी मेरी बहिन बनकर रहीं इसलिए परिस्थिति इतनी संगीन नहीं थी। परन्तु यहाँ स्थिति भिन्न है। यह बात पांसल रानियों से सीधा सम्बन्ध रखती है अतः उस वक्त के न्चाय-विचार की घटना के साथ इस वक्त की इस बात की तुलना नहीं हो सकती। फिर भी बिट्टिदेव जो कहते हैं वह मेरे लिए मान्य है। पट्टमहादेवी और शेष दोनों रानियाँ भी इस बात को स्वीकार कर लें तो प्रकट रोति से न्यार-विचार हो सकता है।" यों मारसिंगय्या ने विनम्न होकर अपनी राय पेश की। पहाराज बल्लाल ने कहा, "हेग्गड़े मारसिंगव्या का कथन ठीक लगता है। मैं खुद रानियों से विचार-विमर्श करके निर्णय लूंगा।" यह कहकर इस मन्त्रणा सभा को उन्होंने विसर्जित किया। इसके बाद महाराज बल्लाल ने सभी रानियों को अपने सीध में बुलाया और कहा, "अब न्याय विचार आमसभा के समन करने की अनेक लोगों की राय है। एक माता-पिता की सन्तान होकर, महादण्डनायक के पद की प्रतिष्ठा से अनुरूप अपने मायके के गौरव को टुकराकर, पोय्सल राजपरिवार की बहुएँ बनकर इस राजवंश की प्रतिष्ठा का भी विचार न करके तुम लोगों ने अनपढ़ गँवारों की तरह, संस्कार-शून्य फूहड़ औरतों जैसा, अपनी मूर्खता को थोड़ा-बहुत प्रदर्शित कर ही दिया। इसी मूर्खता के परिणामस्वरूप तो यह न्याय-विचार होनेवाला है! बह न्यायविचार आमसभा में होने पर तुम लोगों को सदा ही लज्जा से सिर झुकाये रहना होगा। इस तरह के ऊल-जलूल कामों को छोड़कर, अपने आपसी मनमुटाव को भूलकर एक परिवार के लोगों जैसे रहकर, पायके तथा ससुग़ल दोनों घरानों की कीर्ति बढ़ाने का आश्वासन देकर अन्तरंग न्याय-विचार के लिए तैयार होओगी तो हमको बता दो। तात्कालिक रूप से एक होने का आश्वासन देकर आगे फिर वही पुरानी चाल चलोगी तो उस हालत में हम क्या करेंगे, उसे अभी कह नहीं पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 331
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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