________________
बच्चों को भी गम्भीरता से केवल इतना ही उपदेश दिया कि परस्पर मिन्न-जुलकर रहना चाहिए; अपनी पत्नी के कार्य-कलापों के कारण इन बेटियों के जीवन में जो प्रक्षुब्ध परिस्थिति उत्पन्न हो गयी घी उसे बड़ी होशियारी से निवारण करनेवाली शान्तलदेवी के प्रति मरियाने के मन में बहुत गौरव-भाव उत्पन्न हो गया था। उनके साथ भी उन्होंने इन सारी बातों पर विचार-विमर्श किया था। शान्तलदेवी ने भी सारा विवरण न देकर इतना ही कहा था : “सन्निधान के आने पर सब अपने-आप ठीक हो जाएगा।"
विजयोत्सव के बाद चार-पाँच दिन आराम से गुजरे। इसी बीच शान्तलदेवी ने अवकाश पाकर यह सारा मामला विस्तार के साथ बिट्टिदेव को सुना दिया था। सारी बातें सुनकर वह बहुत परेशान हुए। उन्होंने कहा, "राजमहल में बिना देखे-परखे तरह-तरह के लोगों को नौकरी पर लगाने से यही सब होता है। अच्छा, इसे ठीक करेंगे। वास्तव में तुमने जो काम किया है वह प्रशंसनीय है," कहकर शान्तलदेवी की कार्य-कुशलता की सराहना की।
इसके पश्चाः , ए-दो दिन अन्दर ही इस बात की चर्चा हुई कि उन दी व्यभिचारियों का न्याय-विचार हो। इसके लिए सार्वजनिक मंच उचित होगा या नहीं इस बात को लेकर मतभेद था। अतः इसके लिए एक समिति की बैठक हुई। विचार-विपशं होने लगा। इस सम्बन्ध में सभी एकमत नहीं हो सके। वात राजमहल से सम्बन्धित जी है। राजपाल की अन्दरूनी बातों की चर्चा बाहर सभा में करें, यह अच्छा न होगा । जो बातें राजमहल के अन्दर घटी हैं वे लोगों के सामने आएँ और आम लोगों तक पहुंचें, और फिर वे विकृत रूप धारण कर लें तो राजमहल के व्यवहारों से अपरिचित लोगों पर उन बातों का क्या प्रभाव पड़ेगा-ग्रह विचारणीय है। इसे सुनकर विष्टिदेव ने कहा, "राजपरिवार ने कोई ग़लती नहीं की है; बाहर के लोगों ने अपने स्वार्थ साधने की दृष्टि से जो कार्रवाई की है यह भरी सभा के सामने खुल जाब तो इससे दो तरह से लाभ होगा। एक, राजपरिवार के बारे में लोग ग़लत कल्पना नहीं करेंगे, क्योंकि सारी बातों की चची सार्वजनिकों के सामने हो जाएगी। दूसरा यह कि ऐसे चुगलखोरों से राष्ट्र और समाज के लिए जो अहित हो सकता है उसे लोग समझेंगे। समाज ऐसे लोगों को बहिष्कृत कर देगा।" ___ मन्त्रिवर्ग के एक सदस्य ने कहा, “फिर भी यह बात राजपरिवार से सम्बन्धित है।" इसे सुनकर विट्टिदेव ने समझाते हुए कहा, “हेग्गड़ेजी से पूछ लें। बहुत दिन पहले पिरियरसी जी को भी महासभा में बैठाकर न्याय-विचार किया था या नहीं! सुनते हैं कि तय हमारे पूज्य प्रभु भी वहाँ उपस्थित रहे थे। उस न्याय-विचार का पूरा दायित्व, सुनते हैं कि हेगड़ेजी ने अपने ऊपर लिया था।
390 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो