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सकते। तुम पोयसल वंश की रानियां हो, इस वजह से तुम्हारी राय लेकर हमें यह निर्णय करने की अनुमति मन्त्रणा समिति से प्राप्त है कि यह न्याय - विचार सभा ख़ास लोगों की हो या सार्वजनिकों की। इसलिए तुम लोगों की निश्चित राय क्या है-सी बता दो ।"
"हम बहिनों में भिन्नमत होने के लिए मौका ही नहीं आना चाहिए था, पर किसी कारण से मतभिन्नता आ गयी। इसका दुरुपयोग पास के लोगों ने कर लिया है। हम बलिपशु जैसी मूक हो गयी हैं। फिर भी हमने अपनी इस ग़लती को पहचान लिया है। भरी आपसमा के सामने बैठकर सामना करने का साहस हममें नहीं है, इसलिए यह न्याय- विचार बहिरंग सभा में न हो यही अच्छा होगा ।" पद्मलदेवी ने कहा। अन्य रानियों ने भी ऐसी ही अपनी सहमति प्रकट की ।
वल्वाल ने वही निर्णय किया कि मन्त्रणालय में सीमित गोष्टी के सामने न्याय-विचार हो और इस कार्य के लिए दूसरे दिन सभा बुलाने का आदेश दे दिया
गया।
महाराज के आदेशानुसार राजमहल को विस्तृत करते वक़्त निर्मित विशाल मन्त्रणायलय में न्याय-विचार करने के लिए सभा बैठी महाराज बल्लाल, पाँचों सचिव, सभी दण्डनाथ, बिट्टिदेव, उदयादित्व, तीनों रानियाँ, शान्तलदेवी, मरियाने दण्डनायक हेग्गट्टे भारसिंगय्या, दण्डनायिका एचियक्का वे ही सब लोग उस सभा में उपस्थित थे ।
कामुकी दामब्वे, व्यभिचारी बाचम, वैद्य भास्कर पण्डित, दाई, दामचे का पति बिदियम, गालब्बे और कुछ दास-दासियाँ भी उस सभा में बुलाये गये थे ।
शान्तला ने विचारणीय विषय को विस्तार के साथ सभा के सामने पेश किया। बाचम और दामब्बे के बीच का अनैतिक सम्बन्ध इन लोगों ने महाराज के केलिगृह का उपयोग किस तरह से किया, किस-किस ढंग से अण्ट-सप्ट बातें कहकर रानियों में परस्पर असूया और असमाधान पैदा किया, किस तरह से किन-किन के समक्ष दामव्वे और बाचम को गिरफ्तार किया गया, और इन लोगों ने क्या काम किया आदि सभी बातों को विस्तार के साथ उपस्थित सभासदों को बताया । "ऐसे लोगों को राजमहल में ही नहीं, अन्यत्र कहीं भी इस राष्ट्र में नौकरी करने देना खतरनाक है। इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।" शान्तलदेवी का यह भी प्रस्ताव था ।
आपादित अपराधियों से सवाल किया गया। उन लोगों ने जवाब दिया, "यह बात सच है कि हमने केलिगृह में अनैतिक सम्बन्ध किया। नमक मिर्च खानेवाला शरीर ही इसका कारण है। रानीजी स्वयं पूछत तो ज्ञात विषय बता देते थे। नौकर
382 पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो