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________________ उन लोगों को कुछ तसल्ली हुई थी। राजघराने के सभी जनों के हित-चिन्तन में तल्लीन रहनेवाले ऐसे लोग बहुत कम ही मिलेंगे।" "ऐसा होने पर भी दण्डनायक जी के परिवार के लोग उनके विषय में इतने आत्मीय क्यों नहीं हैं? जब भी मौका मिले वे कुछ विरोध करते हुए ही उनके बारे में बोलते रहते हैं। बिना कारण वे ऐसा क्यों कहते होंगे? कुछ-न-कुछ तो कारण होना ही चाहिए" "हो सकता है। ऐसा कुछ हो तो उन्हें प्रभु से या महाराज से स्पष्ट कहना चाहिए। महादण्डनायक की बात का राजमहल में मूल्य होना चाहिए। ऐसा होने पर भी उनके कहने का क्या कारण है ?" "कुछ भी हो। अब इस बाल को यहीं रहने दो। बड़ों की बातों से हमें क्या लेना-देना ।" बल्लाल के कहने पर बात वहीं रुक गयी। द्वारपाल बिज्जिया नं आकर कविजी के आगमन की सूचना दी। बल्लाल उठ खड़े हुए और बिज्जिगा को आज्ञा दी, "उदयादित्य को भेज दो ।” बिडिदेव भी उठ खड़े हुए। कवि नागचन्द्र आये, दोनों ने प्रणाम किया। इस बीच उदयादित्य भी आ गया, उसने भी प्रणाम किया। तीनों बैट गये। पठन-पाठन रोज़ की तरह फिर शुरू हो गया। युद्धभूमि से विजय प्राप्त कर लौटनेवाला यह उनका पुराना शिष्य नहीं, बल्कि ज्ञानार्जन में आसक्त एक अन्य ही ज्ञानपिपासु शिष्य हैं- ऐसा कवि नागचन्द्र को आज बल्लाल के व्यवहार से लगा। विद्या के प्रति बल्लाल की इस अभिरुचि और ज्ञानार्जन की प्रवृत्ति आदि देख-सुनकर गुरु में जैसे एक नयी स्फूर्ति आ गयी थी। इसका फल भी शिष्यों को मिला। घाव की पीड़ा से अभी प्रभु एरेयंग चल-फिर नहीं सकते थे। अच्छी चिकित्सा होने पर भी जाँघ पर का घाव भरा नहीं था। यह देख चारुकीर्ति पण्डित को प्रभु के रक्त में शर्करा के अंश अधिक मात्रा में होने की शंका हुई। रक्त में शर्करांश अधि एक होने पर रक्त के घनीभूत होने की शक्ति लुप्त हो जाती हैं। रक्त परीक्षण के बाद वह शीघ्र ही इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि युवराज को मधुमेह की शिकायत है और इसी कारण से बाव नहीं भर सका था। अनुपान पथ्य बदला गया। सीताफल की पत्ती, चमेली की जड़, कर्कटीमूल मिलाकर दवा तैयार कर देने पर रक्त का शर्करांश कम होता गया और शर्करायुक्त पदार्थों का उपयोग बन्द कर दिया गया। युवराज के निरन्तर विश्राम करते रहने के कारण उनका अन्तःपुर ही मन्त्रणालय बन गया था युद्ध से लौटे सात-आठ महीने बीत गये। इस बीच महादण्डनायक और दण्डनायिका कई बार आये गये। कहने की जरूरत नहीं कि 34 पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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