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________________ से बलिपुर की बात पूछी–बलिपुर के बारे में, हेग्गड़ेजी के बारे में, हेग्गड़ती जी और उनकी बेटी के बारे में। इस बार बिट्टिदेव को बल्लाल का पूछना सहज ही लगा, उसमें पहले जैसा व्यंग्य नहीं था। वहाँ आज एक अपनापन दिखाई दे रहा था। उसने प्रकारान्तर से अपनी यह इच्छा भी प्रकट की कि खुद एक बार बलिपुर जाना चाहिए। बिट्टिदेव से वहाँ की बातें और विचार सुनकर उसकी यह इच्छा हुई थी। विट्टिदेव ने बल्लाल से कहा, "भैया, सुना है कि हेग्गड़ेजी ने महादण्इनायक जी को और उनके परिवार को बलिपुर आने का आमन्त्रण दिया है। युवराज और माताजी से हेग्गड़जी ने इस बात का निवेदन किया हैं। यदि चे जाएँगे तो आप भी, चाहें तो उनके साथ हो आ सकते हैं?" "उनके माथ क्यों जा क्या स्वयं नहीं जा सकूँगा?" "क्यों नहीं! लेकिन तब पद्यलदेवी का साथ नहीं रहेगा।" यह सुन बल्लाल हँस पड़ा। कुष्ठ क्षण बाद बोला, "हों, अब मालूम हुआ कि बलिपुर तुम्हें क्यों सुन्दर लगा" कहते हुए एक नटखटपन की हँसी हंस दी दल्लाल ने। "तो मतलब हुआ, पद्मलदेवी के साथ जाने की आपकी इच्छा है. यह बात मानते हैं न" कहकर उसने भैया की तरफ़ एक परीक्षक की दृष्टि से देखा और पूछा, ''मों से कहूँ?" अरे, अब ऐसा काम मत करो। वह सब तो प्रमंग आने पर देखा जाएगा। इसके लिए कुछ अलग से करना उचित नहीं।" "हाँ तो, बलिपर के हेग्गड़ेजी ने आपको बुलाया नहीं?" "बुलाया जरूर। जब आप सब लोग वहाँ थे तब, सुना है, उन्हें और उनके सभी परिवारवालों को मेरी ही चिन्ता रही।" "सो' तो सच है। मी से भी अधिक वे चिन्तित थे। एक बार उन्होंने कहा भी कि तुम्हें युद्धक्षेत्र में भेजने की सम्मति देकर माँ ने ठीक नहीं किया। कहते थे, 'शरीर से दुर्बल हैं तो इससे क्या, आखिर हैं तो राजकुमार, कल सिंहासन पर बैठनेवाले हैं। उन्हें पूर्णायु होकर हमारे बीच रहना चाहिए। अभी युद्ध विषयक वातों में कम जानकारी रखनेवाले, दुबल बालक को युद्धक्षेत्र में खड़ा करना उचित नहीं, आदि-आदि ।' माँ ही ने उनको समझाया। कहने लगी, 'प्रभु से यह आश्वासन मिला है कि सब तरह की सुरक्षा की व्यवस्था की जाएगी और अप्पाजी को किसी तरह का कष्ट नहीं होगा। इसके अलावा, कल के दिन सिंहासन पर वैठनेवाले को युद्ध आदि के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष ज्ञान होना आवश्यक है, यह समझकर ही युद्ध में जाने की अनुमति दे दी। माँ के इतना समझाने के बाद पट्टमहादेवी शान्तना : भाग दो :: ५५
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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