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में हम सतर्क रहें। और गाँव-गाँव में सुरक्षा दलों का संगठन करें। बाद में उन्हें वापस भेज दिया जाएगा। फिर यह देखेंगे कि शत्रु कहीं फिर से आने की तैयारी तो नहीं कर रहा है? वहाँ से शत्र पक्ष के समाचार जानकर ही सोचेंगे कि आगे क्या कार्यक्रम बनाना है।"
"ठीक है, उस व्यक्ति की व्यवस्था?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"व्यवस्था की गयी है। पूरी रक्षा के साथ उसे राजधानी ले जाया जाएगा। राजधानी में जब तक हम उससे नहीं मिलेंगे तब तक कोई उससे किसी भी तरह की बात न कहे। उसको कहाँ लिये जा रहे हैं इस बात की जानकारी भी उसे न हो। इन बातों की कड़ी आज्ञा दे रखी है।"
___ "हम उससे कब मिलेंगे?" ___राजधानी ही में। वे देरी में यहां से रवाना होंगे। इसलिए दो दिन ठहरकर चलें तब भी हम उनसे पहले वहाँ पहुँच जाएंगे।"
"उसने लो जम्कार किया है उस लिस का दाह होगा ' रोग न करें-यह पेरा आग्रह हैं। वह चाहे जो भी हो, स्वयं प्रेरित होकर आया है, इसका कोई कारण होना चाहिए। चाहे वह किसी भी कारण से आया हो, इससे हमारा बड़ा उपकार हुआ है। उसके इस उपकार की हमें जानकारी हो गयी है। यह बात उसे मालूम हो जाए तो निश्चित ही उसे बहुत खुशी होगी। उससे राजधानी ही में मिलने की बात चित नहीं लगती। इतनी लम्बी अवधि तक उस व्यक्ति को यह मालूम न हो कि उसने जो किया उससे सन्निधान प्रसन्न हैं तो इससे उसके मन पर उल्टा प्रभाव भी हो सकता है। सन्निधान की इच्छा भी यहां कुछ दिन रहने की है, और उसकी चिकित्सा भी यहीं हो रही है। वह अच्छा हो जाय । हम उससे मिलें, अपनी कृतज्ञता प्रकट करें, अपनी सद्भावना प्रकट करें। क्यों और कैसे मिलें आदि के बारे में क्या राजधानी पहुँचने पर विचार करेंगे? मुझं तो उसकी इस सेवा से बहुत प्रसन्नता हुई है। हमें विजय भी प्राप्त हुई। कम-से-कम यही दो बातें उसे बता दी जाएँ। मेरी राय तो यही है, फिर प्रभु की जैसी इटा।' बिट्टिदेव ने कहा। ___"तुम अभी लौट आओगे, इतने थोड़े समय में हमें जय लाभ हो जाएगा यह हम सोच भी नहीं सके थे। उसकी सुरक्षा की व्यवस्था की आवश्यकता हैं यह जानकर और उसे किसी तरह की मानसिक वेदना न हो इसी इरादे से हमने यह सूचना दी। लेकिन अब तुम्हारे कधन पर विचार करना युक्ति-युक्त लगता है। कल प्रातः डाकरस जी को बुलवाएंग और उनसे परामर्श कर निर्णय करेंगे। काफ़ी समय हो गया, अब विश्राम करेंगे।' बल्लाल ने कहा।
दोनों अपने शयन-कक्ष में चले गये।
पलपहादेवी शान्तला : भाग दो :: 297