________________
दण्डनायेका एचियक्का और शान्तलदेवी दोरसमुद्र पहुँच गयीं। उनके पहुंचने पर शान्तलदेवी यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुई कि बोम्पदेवी माँ बननेवाली है। समाचार मिलते ही तुरन्त वह राजमहल की ओर चल पड़ीं। राजमहल में पहले ही यह सूचित कर दिया गया था।
पटरानी पद्मलदेवी शान्तलदेवी की प्रतीक्षा में अपने अन्तःपुर में तैयार बैठी थी। वह कहने की ज़रूरत नहीं कि चामलदेवी भी वहीं साथ रही। शान्तनदेवी से इन वाहनों में चामलदेवी का बहुत लगाव था। पद्मलदेवी कृतज्ञ थी। बोपदेवी उनके प्रति बहुत गौरव रखती धी। शान्तलदेवी यही सोच रही थीं कि तीनों से एक साथ मिल लेंगी। परन्तु ग़जपहल के दरवाजे पर पहुंचते ही दण्डनायिका एचियक्का नै धीरे-से उनके कान में कहा, "पहले बोप्पदेवी से मलाकात होगी चा पटरानी से" ___ यह सुन शान्तलदेवी को आश्चर्य हुआ। बोली, "अभी तो महाराज युद्ध में गये हुए हैं, फिर भी इनसे अलग-अलग मिलना होगा?"
स्थिति सुधारने का काम तो आपका हैं । वातावरण लो एक तरह से गम्भीर है।' एचियक्का ने कहा।
'ठीक है। तब चलिए, पहले रानी बोप्पदेवी से ही मिल ले।" शान्तलदेवी बास ।
शान्तलदेवी के प्रवेश करते ही बोप्पदेवी ने प्रणाम किया और कहा, ''दीदी, मुझे आशीवाद दें। अब आप आ गयी हैं सो आगे सब ठीक हो ही जाएगा।" ___ "माँ बननेवाली की आकांक्षा को पूर्ण करना उनके आस-पास रहनेवालों का कर्तव्य हैं। आपकी इच्छा डाहवली की कृपा से परिपूर्ण होवें। आप सो महाराज की पाणिगृहीता हैं। नाते के हिसाब से हमें आपके पैर पड़ना चाहिए, न कि आपको हमारे । मैं आयु में बड़ी हूँ, फिर भी आपसे पैर छुआने जैसा स्थान मेरा नहीं 1 यदि मैं जानती कि आप इस तरह करेंगी, तो मैं इसके लिए मौका ही न देती। अब इसे आखिरी बार समझें। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। यह न मेरे लिए श्रेयस्कर होगा, न आपके लिए।"
“वहीं सही, पैर न छुऊँगी। मेरे लिए यही प्रयाप्त है कि आप मुझे दीदी कहने की अनुमति दें। अच्छा, आइए, बैठिए । यादवपुरी कैसी लगी? मुझे भी वहाँ आने की अभिलाषा है।''
ऐसी कोई बात नहीं, कभी भी पधार सकती हैं। युद्धक्षेत्र से महाराज के लौटने पर साथ ही चलेंगी। सन्निधान की भी अनुमति मिल जाएगी। और हाँ, समाचार सुनकर मुझे बहुत आनन्द हुआ। अभी और प्रतीक्षा करनी होगी या शीघ्र ही पुत्रोत्सव का भोज मिलेगा?" शान्तलदेवी मुस्कुरा दीं।
298 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो