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________________ हाथ में लिया और मूर्ति को नमन किंवा । पुजारी वहीं खड़ा था। प्रसाद वाले ढाक के पत्ते को यायें हाथ में ले दायें हाथ से प्रसाद लेकर आँखों से लगाकर, मुंह में डालने ही वाले थे कि इतने में दूर से आवाज़ सुनाई पड़ी : "प्रभु! वह प्रसाद नहीं जहर है, प्राण घातक जहर। जिसने प्रसाद कहकर दिया वह कोई पुजारी नहीं, वह हत्यारा है, उसे पकड़ लीजिए। महाराज बल्लाल और विट्टिदेव ने अपने उस हाथ को नीचे कर लिया। इस घटना के तुरन्त बाद, 'हा हा' का आर्तनाद सुन पड़ा। कुछेक ''पकड़ो, पकड़ो" कहते हुए उस ओर दौड़ने लगे। लेकिन तब तक वह व्यक्ति खिसक चुका था। इस सबके कारण वहाँ खलबली मच गयी थी। "हाहाकार करते गिरे हुए व्यक्ति को उठाकर तुरन्त चिकित्सालय पहुंचा दिया गया। उसकी काख में खुखरो लगा था। महाराज और बिट्टिदेव के हाथ के उस प्रसाद को भी परीक्षार्थ चिकित्सालय में भेज दिया गया। खलबली के शान्त होने तक वहीं रहकर, हाथ धो चुकने के बाद महाराज बल्लाल बिट्टिदेव के साथ चिकित्सालय गये। चिकित्सकों ने इस खुखड़ी को बाहर निकालकर रक्तस्त्राव को रोकने हेतु कुछ जड़ी-बूटियों के रस से घाव को लेप दिया था। और अब वे रक्तारक्त वस्त्रों को अलग कर मरहमपट्टी कर रहे थे। घायल ने महाराज को देखा और हांफते हुए निवेदन किया, ''प्रभो! शनु हमला करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। उन लोगों ने हमारे इस शिविर के सभी लोगों को मार डालने का विचार किया है। हमारे इस शिविर से आधे कोस को दूरी पर वे दक्षिण-पश्चिम के जंगल में छिपे तैयार बैटे हैं। उनकी इस योजना का प्रयोग उन्हीं पर कर दें। इसमें कुछ भी विलम्ब न करें।" सन्निधान का यहीं रहना अच्छा हैं। मैं इस हमले का सामना करूंगा। डाकरस की अश्वसेना दुश्मनों को चारों ओर से घेर लेगी," कहकर आदेश की प्रतीक्षा न करके विट्टिदेव चल पड़ा। तूफ़ान की तरह भागनेवाले विट्टिदेव को देखकर बल्लाल "अप्पाजी ! अप्पाजी!'' पुकारते हुए चिकित्सालय से बाहर की ओर दौड़े। तब तक तो विट्टिदेव आँखों से ओझल हो चुके थे। महाराज फिर चिकित्सालय के अन्दर चले गये। खबर देनेवाला वह अपरिचित व्यक्ति जीभ निकाले, गले पर हाथ धरे लेटा था। चिकित्सक एक कटोरे में पानी लाकर उसे पिलाने की कोशिश कर रहे थे। पीड़ा के मारे वह विकल हो रहा था। किसी तरह प्रयत्न करके थोड़ा पानी पिलाया गया। बल्लाल ने चिकित्सक से कहा, "किसी तरह से इसे बचाना होगा, वह बहुत जरूरी है।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 295
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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