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________________ और उनके वाहनों से खचाखच भर गये। देखते ही देखते, मनिदर के चारों ओर एक बड़ा नगर ही बस गया। इस सारी तैयारी का समाचार चेंगाल्वों के जानन्दिनी के कानों में पड़ चुका था। वह समझ बैठा था कि पोय्सलों को इस बात की ख्वर ही नहीं कि यहाँ युद्ध की तैयारी हुई है। ऐसी हालत में इस धार्मिक मेले में एकत्रित जन-समुदाय घण्टी बजातं खा-पीकर आराम से पड़ा रहेगा। ऐसे मौके पर इस जन-स्तोम के बीच पोय्सल महाराज और उसके भाई की आसानी से पकड़ लिया जा सकेगा। और तब जीत का इंका हमारा ही बजेगा । अगर मेले में सम्मिलित जन-स्तोय बिगड़ उठा तो उसे हरा-धमकाकर, पीछा करते हा ले जाकर कावेरी नदी में डूबो देंगे। बदि पोयसल राज्य हमारे हाथ लग जाय तो फिर चालुक्यों के लिए हमसे खटका पैदा हो जाएगा। यो मन्त्रणा करके चेंगाल्बों के जानन्दिनी ने अपनी सेना को गुप्त रीति से पहाड़ी मार्ग से रवाना कर दिया। उस सेना ने सोमेश्वर महादेव के जतिष्ठा महोत्सव में तो वि भने ही कोरी के उत्तर और हेमावती के दक्षिणी पहाड़ी प्रदेश में अपना पड़ाव डाल दिया। पहाड़ी प्रदेश में सैन्य संचालन आसान न होने के कारण उसकी सेना पैदल सिपाहियों की ही रही। ___ आनन्दिनी की गतिविधियों का पता पोप्सल सेना का समय-समय पर पिन जाचा करता। महाराज बल्लाल और बिट्टिदेव दोनों सोमेश्वर स्थापना में सम्मिलित हुए। सोमेश्वर महादेव की सोमबासर की पूजा-अचां आदि कैकर्य के लिए तया अखण्ड दीप के लिए सिन्दूर को दान के रूप में दे दिया। सोमेश्वर महादेव की प्रतिष्ठा आठ महीन पूर्व ही हो चुकी थी। इस बात का पता चेंगाल्चों को नहीं था। माघ मास के दिन महादेव की पूजा-अचर्चा के लिए विशेष रूप से श्रेष्ठ माने जाते हैं। माघ बहुल दशमी के दिन पुनः प्रतिष्ठित सोपेश्वर महादेव की विशेष पूजा-अर्चा की, महाशिवरात्रि के साथ सोमवार होने के कारण व्यवस्था की गयी थी। लक्षदीपोत्सव और मशालों के साथ सोमेश्वर महादेव के जलूस के लिए रथ को सजा दिया गया था। उत्सव की घोषणा कर दी गयी। वहाँ डेरे-टेरे में जितने लोग ठहरे थे सबने एक-एक मशाल तैयार कर ली थी। मन्दिर के सामने का विशाल प्रांगण मशालों की तारों से जगमगाने लगा। महादेव की उत्सवमूर्ति को पालकी में विराजमान किया गया। हजारों मशाल एक साथ जगमगा रहे थे। किसी को इस बात का भान तक नहीं हुआ कि वह अमावस्या की रात है। उत्सव मूर्ति के अगल-बग़ल महाराज बल्लाल और विट्टिदेव दोनों शुभ्रवस्त्र धारण किये खड़े थे । एक पुजारी परात हाथ में लेकर उनके पास आया और प्रणाम करके दोनों को ढाक के पत्तों में प्रसाद दिया। श्रद्धा-भक्ति के साथ दोनों ने प्रसाद 294 :: पट्टमहादेवी शान्ताला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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