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________________ यह हमें भी साथ वसीट लायी है।" बल्लाल ने कहा । "ऐसा हो तो स्वयं सन्निधान ही बता सकेंगे न?" "वही कहें।" कहते हुए ये बोप्पदेवी की ओर मुड़कर बोले, "कहो!" "मेरी होनेवाली सन्तान लड़का हो यही आशीर्वाद दें।" कहते हुए उसने दोनों को प्रणाम किया। यह बात दोनों को ठीक नहीं जँची। उनकी इस भावना का आभास उनके चेहरों पर स्पष्ट था। फिर बोली, "उठो बोप्पि, जिस भगवान ने तुम पर यह कृपा दिखायी है वह इस आकांक्षा को पूरा करेगा। हमारे आशीर्वाद से न लड़की लड़का बन सकेगी और न ही लड़का लड़की। है न चामू!" अपनी बहिन के उत्तर की प्रतीक्षा न करके पचलदेवी ने घण्टी बजायी । नौकरानी रुद्रब्बे उपस्थित हुई । "रुद्रब्बे, कुछ मिठाई तुरन्त ले आओ।" पद्मला ने कहा । इतने ही क्षणों में उनके मन में ईष्यां का भाव अंकुरित हो चुका था । दासी मिठाई लाने ही वाली थी कि इतने में दूसरी दासी सुग्गा ने गुप्तचर चाविमय्या के आने की खबर सुनायी। तुरन्त बल्लाल उठे, "अभी आते हैं" कह मन्त्रणागार में चले गये, जहाँ चाविमय्या उनकी प्रतीक्षा कर रहा था । चाविमय्या ने धीमे स्वर में निवेदन किया, "चेंगाल्वों का आनन्दिनी सुसज्जित सेना को साथ लेकर आ रहा है। सेना को एक पखवारे में कावेरी के उस वीर पहुँच जाने की सम्भावना है। उसकी संख्या का अनुमान लगाने के बाद, लगता हैं अब यादवपुरी में स्थित हमारी सेना अपर्याप्त है। यहाँ से सेना को शीघ्र ही मल्लिपट्टण के जरिये रवाना करने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें अब विलम्व न हो, इसलिए मुझे ही सीधे सन्निधान के पास भेजा गया है।" "तुमः" “मुझे तुरन्त लौटना है। वहाँ जाने पर कौन-सा हुक्म देंगे, पता नहीं ।" "अच्छा, तुम जा सकते हो, कहो कि व्यवस्था हो जाएगी।" बल्लाल ने कहा । चाविपय्या चला गया । बल्लाल पद्मलदेवी के अन्तःपुर की ओर बढ़े। उनका मस्तिष्क कुछ और सोच रहा था। मिठाई को बाँट लेने की उनकी इच्छा अब शायद उनके मन से खिसक गयी थी। इसलिए अन्तःपुर के दरवाजे पर पहुँचकर एक-दो क्षण के लिए खड़े रहे। उन्हें पद्मलदेवी की बात सुन पड़ी वह कह रही थी- "देखा चामू, इस बोप्पि को ! ज़्यादा बातें नं करके गुमशुम रहकर अपना लक्ष्य साध लेती है।" "मुझे बात करना नहीं आता इसलिए मैं अधिक नहीं बोलती। कुछ का कुछ बोल गयी तो क्या अच्छा होगा? बोप्पदेवी ने कहा बल्लाल को लगा कि उसकी पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो :: 289
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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