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________________ सीधे पूजाग्रह में गयी और घी के दीये जलाकर नमस्कार करके फिर बनाल के पास आ गयी। बल्लाल ने पूछा, “इतनी जल्दी ही सब हो गया?'' और मुस्कुरा दिन। भगवान के सामने घी के दीये जला दिये. प्रणाम किया। अब तो दीदियों के पास सन्निधान के साथ जाने की अभिलाषा है।" चोपदेवी बोली। तीनों रानियों के आपस में एक समझौता हुआ था कि क्रमशः एक-एक मौसम (ऋत) में महाराज के साथ रहेंगी। इसके अनुसार क्रम से दो-दो मौसम महाराज के साथ व्यतीत हो चुके थे। और अब साल पूरे होने को था। अपने सुखी जीवन में कोई अकेली न रही। महाराज के साथ एक रानी को जब रहना होता तो बाकी दोनों साथ रहती थीं। मतलब यह कि इस एक वर्ष का यह जीवन उन सबने बड़े ही हपोल्लास के साथ व्यतीत किया था। सबके अन्दर गत बसन्त ऋतु से एक सुप्त भावना क्रियाशील थी और वह निरन्तर बढ़ती जा रही थी। प्रत्येक की यही मनोवांका थी कि महाराज के उत्तराधिकारी का जन्म उसकी अपनी कोख से हो। आधा वसन्त उपनयन और विवाह के समारम्भ में ही व्यतीत हो चुका था। इन मुहूर्तों के समय पाला वेदी पर साथ-साथ बैठती तो रही, लेकिन सान्निध्य बोप्पदेवी का रहा आया। बाद में पद्मला और चामला के साथ महाराज के सानिध्य के दो ऋतु ग्रीष्म और वर्षा बीत चुके थे। सन्निधान की शरद ऋतु बोपदेवी के साथ बितानी थी। अपनी बारी पर सन्निधान के साथ रहने के फलम्बरूप, अपनी सफलता का सन्तोष सन्निधान से निवेदन कर, उस अपने उल्लास की अपनी दीदियों में बाँटने के उद्देश्य से वह चन्द्रशाला में आयी। ___दम्पती का यह आगमन अनिरीक्षित ही था, फिर भी बड़े उत्साह से इन लोगों ने उनका स्वागत किया। बैठने के लिए सुसज्जित आसन दिये। सबके बैठ जाने के बाद बल्लाल ने कहा, "तुम्हारी बहिन आशीवाद पाने के लिए आयी है। अकेली आने में संकोच कर रही थी इसलिए यह हमें पकड़ लाथी है।" "आशीर्वाद माँगना क्या है, वह तो हमेशा ही रहेगा। इसमें संकोच करने की क्या बात थी?" पद्मला ने कहा। "जब वह खुद आशीर्वाद मांगने आयी हैं तो उसी से पूछ लो । क्या उसे यह मालूम नहीं कि तुम दोनों सदा ही उसके मंगल की कामना करती हो।' बल्लाल का उत्तर था। "तो फिर" चामलदेवी का सवाल था। "कुछ उद्देश्य है, इसलिए आयी है। हमसे आशीर्वाद माँग रही थी। आप उसके लिए बड़ी हैं, इसलिए आपका आशीर्वाद लेने को हमने कहा। इसके लिए 2HR :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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