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अधिक योग्य हैं। यह कहते हमें कोई संकोच नहीं, बल्कि अभिमान होता है । परन्तु वह हमारा अनुवर्ती बनकर रहता है। हम एक ही माता-पिता की सन्तान हैं। कल आपकी सन्तान के लिए पिता एक होने पर भी माताएँ भिन्न-भिन्न होंगी। ऐसा होने पर भी उन शिशुओं को एक माँ की सन्तान की तरह बढ़ाना होगा। इसके लिए आप तीनों को सूत्रधार बनना होगा।"
"सन्निधान की सौगन्ध, हम वैसे ही बरतेंगी।" पद्मला ने कहा ।
"कई बार कहा है कि सौगन्ध नहीं खानी चाहिए। बुरी आदत सीखी हैं, जाएगी भी तो कैसे " बल्लाल ने कहा ।
"गलती हुई, क्षमा करें। बचपन से अभ्यस्त बात कभी-कभी मुँह से अनजाने निकल आती है। आग लगे ऐसी जीभ को ।" कहती हुई पद्मला ने बल्लाल के पैर पकड़ लिये ।
"ठीक है। उठो, कोई नौकर-चाकर देख न ले। मुझे और कुछ नहीं चाहिए, बस द्वेष रहित मनोधर्म हमारी सन्तान में बढ़े- ऐसा संकल्प आप लोगों का हो।" "वैसा ही करेंगी।" तीनों ने कहा ।
"राज्य बड़े बेटे को या पटरानी के बेटे को ?" बोपदेवी ने पूछा ।
बल्लाल ने सन्दिग्धता में अपनी रानी की ओर देखा और कहा, "पटरानी के बेटे को पट्टाभिषेक करने की रूढ़ि है। ऐसे ही बड़े बेटे को पट्टाभिषिक्त करने की भी परिपाटी है। आप बहिनें हो, स्वयं आप ही लोग निर्णय कर लो। फिर उसी तरह व्यवस्था कर तंगे ।"
"हम नहीं कहेंगी। पटरानी तो बड़ी दीदी हैं। वह जैसा कहेंगी वैसा ही हम करेंगी।" खोप्पदेवी ने कहा ।
पटरानी ही बड़े बेटे को जन्म दे तो कोई समस्या ही नहीं उठेगी न?" चामलदेवी ने कहा ।
"मैं बड़ी हूँ, इसलिए पटरानी बनी। बहिन चामला ने अपनी सदिच्छा प्रकट की। फिर भी उस बात से यह ध्वनित होता है कि बड़ा बेटा हो । सन्निधान के बड़े बेटे को पट्टाभिषिक्त करने में कोई एतराज नहीं। अपनी तरफ़ से स्पष्ट कहती हूँ ।" पद्मला ने कहा ।
" शान्तला के साथ मैत्री का फल है तुम्हारा यह निर्णय, पद्यला तुमसे प्रेम करके मैं धन्य हुआ ।" बल्लाल ने कहा ।
“मतलब?" चामलदेवी ने पूछा ।
"ऐसी पद्मला की बहिनों ने मुझसे पाणिग्रहण किया - यह महाभाग्य है, ठीक है न?"
सबके चेहरों पर मन्दहास खिल उठा। अमराई से कोयल की कूक सुन पड़ी।
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 271