SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमन्त्रितों की सूची में उनका नाम छूट गया था तो उसे, कहते हैं, मेरी माँ ने . ही जोड़ा था। ऐसी हालत में कैंसे विश्वास करें कि उन्होंने रोक रखा था," पद्यला ने कहा। "यह विषय महामातृत्री को मालूम है। तुम्हारी माँ को भी मालूम धा; बाद में महादण्डनायक जी को भी मालूम हो गया।' "हमारे पिताजी को माता की बात पर पहले अवश्य अधिक विश्वास था। परन्तु इधर कुछ समय से वे माँ की बात को सुनते नहीं थे। यही शायद उसका कारण रहा होगा। पद्यला ने कहा। "जानं दो, आपकी माँ ने क्या किया, क्यों किया आदि सभी बातों को महामातृश्री से स्पष्ट कह दिया है। उस पर अब चर्चा करने की जरूरत नहीं। इस बात को मैंने इमलिए कहा कि इतना तीन मतभेंट होने पर भी स्थान माहात्म्य के कारण हम तीनों भाइयों के बीच मनमुटाय नहीं हो सका। आप तीनों बहिनें यहाँ मौजूद हैं। मुझ अकेले को आप तीनों को समान रूप से खुश रखना है। मैं भी मनुष्य ही तो हूँ। यदि आप लोगों को ऐसा लगे कि मैं आप सबके प्रति समानता का व्यवहार नहीं कर रहा हूँ, तो ऐसी स्थिति में आप लोगों में शंका उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। इस तरह नहीं समझा जाय कि 'उसके कहे अनुसार ही करते हैं, मेरी तरफ ध्यान ही नहीं देते' --आदि आदि। ऐमो भावनाएँ सहज ही उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए जब कभी किसी को ऐसा महसूस हो तो वह मुझे अवश्य बताए। मेरे व्यवहार के लिए किसी और को कारक मानकर अपने दिमाग को खराब नहीं करेंगी।" ____ "हम आपस में एक-दूसरे को अच्छी तरह समझी हैं इसलिए ऐसा मौका ही नहीं आएगा। और फिर सन्निधान भी हम सबको समान रूप से देखते रहेंगे--इस वात का हमें विश्वास है।" पद्मला ने कहा। ठीक हैं। आप तीनों एक माँ-बाप की बेटियाँ हो। संयोग से मुझसे आप तीनों का विवाह हो गया है। फल भरे आमों को देखकर आप सभी में फल पाने की इच्छा उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसा होना सहज भी है। कल आपके गर्भ-सम्भूतों को सिंहासन के लिए झगड़ा करने की स्थिति उत्पन्न न हो।" ___. “झगड़े की बात क्यों जटती है! पट्टमहादेवी के गर्भ-संजात ही पट्टाभिषिक्त होंगे न?' बोप्पदेयी ने प्रश्न किया। "सो तो सच है। बचपन में आप लोग अपनी माँ जैसा नचाती वैसा नाचती रहीं। लेकिन अब आप पोसल वंश को रानियाँ हैं अतः आनेवाली सन्तान को आप बचपन से ही ऐसी शिक्षा देती रहेंगी जैसी कि हमारी माँ ने हमें दी। कैसी भी परीक्षा कर आजमाकर देखें, छोटे अप्पाजी महाराज बनने के लिए हमसे 270 :; पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy