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उपनयन की बात आप सबको याद है न?"
"हाँ, हमारे पिताजी और माताजी ने हो तो उस समय सारे कार्यभार को निबाहा था।"
''हाँ, हो, उन्होंने ही तो निवहण किया था इसीलिए इस जगह को एक ऐतिहासिक रूप प्राप्त हुआ है। नग उपनय से अबसर पर की और शान्तला नहीं आयी थीं।"
"उसे हम कभी न भूल सकेंगी। उनके न आने का कारण हमारी माँ ने कैसी चातुरी के साथ महामातृश्री को विस्तार के साथ समझाया घा, इसे घण्टों तक हमें सुनाया है, तब हम कैसे भूलेंगी भला?''
"आप लोगों ने कभी शान्तला से पूछा भी था कि क्यों नहीं आयीं?'
"पूछे बिना रहेंगी कैसे : पूला ही। छोटे अप्पाजी इनकं न आने से निराश मन से वेदी पर बैठे रहे। वह दृश्य हमारे दिलों पर छापे की तरह अंकित हो गया था।"
"तत्व शान्तला ने क्या कहा था?"
"उसने कहा था कि ठीक उसी वस्त किसी से ख़बर मिली तो जल्दी में उसके पिताजी को अकेले ही आना पड़ा। जिस समय खबर मिली उस वक्त सपरिवार निकलते तो ठीक मुहूर्त पर दोरसमुद्र नहीं पहुँच सकते थे। मां-बंटी को साथ न ला सकने के कारण उन्हें बहुत दुःख रहा।" ।
"आप लोगों ने विश्वास कर लिया?''
"हमारी माँ को कही बातें जन मन में रहीं तब अविश्वास करना सम्भव नहीं घा। यही सोचकर कि इस विषय पर हमें जिज्ञासा ही क्यों, हम चुप रह गयीं।" पद्मला ने बताया।
"तब हेग्गड़ेजी अकेले आये थे न, उस सम्बन्ध में मेरे और छोटे अप्पाजी के बीच एक विशेष चर्चा हुई थी।" कहकर बल्लाल ने उस दिन की सारी चर्चा को विस्तार के साथ ज्यों-का-त्यों कह सुनाया और बताया कि आपके और आपके घराने में जो गहरा विश्वास था उसका निशान हैं यह स्थान ! बह विश्वास बाड में छिन्न-भिन्न हो गया। आज वह छिन्न विश्वास फिर जड़ा है। वास्तव में राजमहल के वातावरण के बिगड़ने का मुख्य कारण वहीं धा कि ये उपनयन के अवसर पर क्यों नहीं आयीं। शायद यह बात आप लोगों को मालूम नहीं।
'नहीं।"
"हेग्गड़े परिवार के लिए जो आमन्त्रण था उसे भेजने से तुम्हारी माँ ने रोक रखा, यह बात मालूम हो गयी और यही वातावरण के विषाक्त होने का कारण बना।"
तीनों चकित हो उठीं। "क्या कहा? हमारी माँ ने रोक रखा? झूठ है।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 2012