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________________ "निश्चित रूप से जानने में है. दवा रहा है।" "तब तो आपका भी अभी...?" "पहले जो आये उनका पहले, बाद की बात बाद में।" "जैसा ठीक लगे करो, छोटे अप्पाजी। मेरा मन दुविधा में पड़कर भयंकर पीड़ा का अनुभव कर रहा था। कई बार यह अनुभव हुआ कि मैं भी सबकी तरह सामान्य मनुष्य ही बनकर रहा होता तो कितना अच्छा होता! जो मन में नहीं हैं, उसे मुंह से कहकर सन्दिग्धावस्था से पार होने की भी स्थिति आयी थी। असली रूप को छिपाकर कुछ बाहरी आवरण ढक लेना पड़ता था। हम जैसे हैं वैसे यदि नहीं दिखे तो दूसरों को दुःख होगा, उन्हें अच्छा नहीं लगेगा-इस वजह से जो हम चाहते हैं उसे छोड़ देना पड़े तो वह कितना कष्टदायक दण्ड होगा-जानते हो अप्पाजी: परन्तु ऐसी सभी परिस्थितियों में तुमने सहारा दिया है। छोटे होने पर भी दूर तक को सोचन में तुम मुझसे श्रेष्ठ हो। तुम्हारे सहारे चलने पर सदा ही अनेक प्रसंगों में हमारा हित हुआ है। इसका प्रमाण मिल चुका है। हमारे हित के लिए, हमारे सुख के लिए तुमने जो सब किया उससे हम परिचित हैं, इसलिए जो तुम कहोगे हमारे राज्य में वही शासन की रीति होगी।' "सन्निधान की प्रशंसा मेरे लिए आशीर्वाद है। मैंने माताजी को बचन दिया है कि मेरा जीवन सन्निधान की और राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित है। इस वचन के पालन करने के लिए सन्निधान मुझे आज्ञा और अवसर दें। मैं एक निष्ठावान प्रभु-किंकर बनकर रहना चाहता हूँ।" "प्रभु-किंकर ये सब बात कवियों के लिए सुरक्षित रखो। अब आगे क्या करना है, सो देखा। "जल्दी करेंगे तो कैसे होगा?" “अब आगे का कदम क्या हो इसके लिए सलाह-मशविरा करना होगा शायद। कब हेग्गड़ेजी के घर की ओर यात्रा होगी?'' __ "वहाँ क्यों जाना होगा? मुझे सभी अधिकार जब प्राप्त हैं तो यहीं बैठे-बैठे बुलवा सकता हूँ। परन्तु फ़िलहाल उसकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि महामातश्री नं हेग्गड़ती जी को बलवा भेजा हैं।" "तो तुम्हारा कहना है कि छोटी हेग्गड़ती भी आएंगी-याही न?" इतने में किशड़ सरकाकर रेविमव्या ने अन्दर की ओर झाँका । "बह देखो, तुम्हारा प्रिय शिष्य झाँक रहा है। छोटी हेग्गड़ती जरूर आयी होंगी, जाओ।' कहकर बल्लाल ने जोर से घण्टी बजायी। रेविमव्या ने किवाड़ खोलकर परदा हटाया। बिहिदेव बाहर निकल आये। परदा सरकाकर किवाड़ बन्द कर रेबिमय्या भी उनके पीछे चला गया। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 257
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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