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________________ शान्तला के साथ वालक विट्टिगा था। रेविमथ्या को देखते ही बिडिगा उठकर रेबिमव्या के पास चला गया। उधर अन्दर एचलदेवी और पाचिक बातचीत कर रही थीं। इधर शान्ततः कि बादची कामे तर २ ढंगला होने पर भी दोनों तरफ़ से विषय एक ही घा। कुशल प्रश्न के बाद उधर एचलदेवी ने कहना शुरू किया, “हेग्गड़ती जी, सहज आत्मीयता से बातचीत करके युग-युग बीत गया-सा लगता है। भगवान ही जानता है कि प्रभु जब से युद्धक्षेत्र से लौटे तब से अब तक मैंने समय कैसे गुजारा है। उसके पूर्व जो प्रशान्त वातावरण रहा वह एकदम कलुषित हो गया था। किसी एक के कारण ऐसा हुआ. वह नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक उसे शक्त्यनुसार बिगाड़ने का काम व्यक्त या अव्यक्त कर से करने के कारण बने हैं। बहुत दिनों के बाद अब यह वातावरण छनकर साफ़ हुआ है। अब लगने लगा है कि धीरे-धीरे प्रशान्त बनेगा। वास्तव में मेरा मन बहुत कुण्ठित हो गया था। दण्डनायिका चामब्बे को उनकी मृत्यु से पहले जो देख आए, उसके बाद मन कुछ हलका हुआ है। छोटे अप्पाजी और आपकी अम्माजी के प्रयत्नों के फलस्वरूप सत्यांश प्रकट हो सका। उन दोनों ने वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए क्या-क्या किया सो सब समय-समय पर रेविमय्या ने बताया है। छोटे अप्पाजी की बुद्धिमत्ता और चतुराई के कारण सभी के मन पूर्वाग्रह से मुक्त हो गये हैं। अब केवल एक बात रह गयो है, जिसे मैं अकेली जानती हूँ, और कोई नहीं जानता। वह है मेरे और दण्डनायिका के बीच हुई बातचीत । वहाँ से लौटते ही लोटे अप्पाजी ने मुझसे पूछा भी, लेकिन मैंने उससे भी नहीं कहा। कह दिया कि स्त्रियों की बातें हैं, तुम लोगों से कहने की नहीं । वास्तव में चारुर्कीर्ति पण्डितजी ने कहा था कि दण्डनायिका जी का जीना कठिन है, इसलिए मैं खुद देख आने के इरादे से गधी। पालूम हुआ कि दण्डनायिका जी ने दण्डनायक जी से राजमहल में आने की इच्छा प्रकट की थी। उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें वहाँ से हिलने भी दिया जाए । मेरा जाना ही अच्छा हुआ।' कहकर एचलदेवी ने घण्टी बजायी। सेविका उपस्थित हुई। "दरवाजा बन्द करके बाहर ही रही, किसी को अन्दर न आने दो।" सेविका को आदेश दिया। सेविका 'जो आजा' का बाहर चली गयी। एचलदेवी से जो बातें हुई थीं, सबकी-सब विस्तार के साथ हेग्गड़ती को बता दौं। उन्होंने भी बड़े कुतूहल से सुना। बाद में एचलदेवी ने कहा, “हेग्गड़ती जी आपको सारी हालत मालूम है। अभी हाल जो महासभा हुई, उसमें सारी बातें प्रकट हो गयी हैं-यह भी आप जानती हैं। चामब्बे जी का यह कथन था कि 'बच्चियों को मैंने आपकी गोद में डाल दिया। शायद यही उनके आखिरी शब्द थे। बाद को दो दिन साँस लेती रहीं, मगर बोली नहीं। उन्होंने तो बेटियों को मुझे सीपकर 25% :: पमहादेवी शान्तला : भाग को
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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