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________________ महाराज विनयादित्य दोनों के निधन के बाद, हमें लगा कि राज्य छोटे बालकों के हाथ में पड़कर कमजोर हो जाएगा। ऐसी दशा में हमला करें तो अच्छा होगा। यही सोचकर हमला करने का निर्णय लिया गया। परन्तु इस बार भी लारे विचार गलत सावित हुए। राष्ट्रनिष्ठा में पोसल राज्य की जनता की कोई बराबरी नहीं कर सकता-यह प्रमाणित हो गया।" "तुम लोगों ने गुप्तचर बनकर क्या काम किया?" "अधिकारी वर्ग में मेल-मिलाप है या वैमनस्य -यह जानकर ख़बर भेजते रहना; सेना की गतिविधियों की समय-समय पर जानकारी देते रहना, रसद का संग्रह कितना हुआ है, राष्ट्र में वर्षा और पैदावार एवं उसकी सुरक्षा आदि बातों का पता लगाकर समाचार पहुँचाना, हमलों की सम्भावना हो तो पता लगाकर अपने मालिक को आगाह कर देना, जहाँ सम्भव हो वहाँ द्वेष पैदा करना, देष को बढ़ाने की कोशिश करना-आदि-आदि।" ___ "दोरसमुद्र पर सीधा हमला करने क्यों आये?" । __“महाराज बेलापुरी में हैं। दक्षिण-पश्चिम की ओर से गाल्वों के हमले के डर से सेना के एक हिस्से को यादवपुरी में रखा गया। राज्य का भण्डार राजधानी में है उसे अपने वश में करने पर चल घट जाएगा। उधर चेंगाल्वों को उकसाकर भेज दिया जाय और जो सेना है उसे दो भागों में विभक्त कर दें तो आपकी पराजय निश्चित है, यही समझकर यह निर्णय किया गया। इधर चेंगाल्व पीछे हटे, उधर हमने सेना संचालन में भी कुछ ग़लतियाँ कीं। सबसे अधिक आपकी एकता प्रशंसनीय है जिसके कारण आपकी जीत हुई। राज्य का भविष्य भी अच्छा है।" "हमने जग्गदेव के प्रति क्या अन्याय किया था?" "उन्हें अपने राज्य को विस्तृत बनाने की आकांक्षा है।" “राज्य विस्तार के लिए जिस किसी पर हमला, हत्या-ये ही साधन हैं?" "उत्तर देने के लिए ये प्रश्न मेरी शक्ति के बाहर हैं। पोय्सल चालुक्य चक्रवर्ती के सामन्त ही तो हैं। फिर भी सिंहासनारोहण के समय उनकी सम्मति के विना पट्टाभिषिक्त होना चक्रवर्ती के लिए यानहानि की बात होगी न? इस मानहानि को वे भला कैसे सह सकते थे? जग्गदेव की उस महत्त्वाकांक्षा को उन्होंने इसीलिए प्रोत्साहित किया और इसी कारण से उन्होंने हमला किया।" "चालुक्यों के लिए अपने प्राण-अर्पण करने को पोसल तैयार रहे हैं। धारानगरी के युद्ध में चालुक्यों की विजय के लिए एरेयंग प्रभु ही कारण नहीं थे।" "आवश्यकता पड़ने पर चक्रवर्ती की सहायता करना सामन्त का धर्म है। सहायता देनेमात्र से वह सर्वाधिकारी नहीं बन जाते। जो गौरव मिलना चाहिए वह अगर न मिले तो क्षुब्ध होना सहज ही है। और, शंका भी उत्पन्न हो सकती हैं। 24 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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