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________________ इधर-उधर देखकर छोले, "कुछ संकोच करने की जरूरत नहीं, कहिए।' "आज आप दण्डनायिका जी के पास ही रहें,' पण्डितजी ने कहा। "तो..." घबराकर मरियाने न पाण्डत की ओर देखा। ''टण्डनायिका जी की नाई की गति सन्तोषजनक नहीं। पित्त का प्रकोप बहुत अधिक हो गया हैं। आज का दिन अगर बीत जाय तो फिर हृदय की गति के ठीक हो जाने की सम्भावना है। इस पित्त के प्रकोप को शमन करने के लिए अच्छी और प्रभावशाली दवा दी है। अगर वह दवा दण्डनायिका जी को लग जाती है, तो वे बीमारी से जल्दी ही मुक्त हो जाएंगी। इसलिए आपको आज उन्हीं के पास रहना चाहिए।' पण्डितजी ने कहा। "ऐसा ही होगा पण्डितजी" मरियाने ने कहा। उनकं कहने के ढंग को देख पण्डितजी ने धीरज धारण करने को कहा, "दण्डनायक जी घबराएँ नहीं। स्थिति का धैर्य के साथ सामना करना होगा। बच्चियाँ घबरा जाएँ ऐसी कोई बात न कहें। आपका धैर्य दण्डनायिका जी को नया जीवन भी ला सकता है। मैं राजमहल से लौटते हुए फिर यहाँ आऊँगा। ठीक है ना मरियाने ने सिर हिलाकर सम्मति की सूचना दी। पण्डितजी चले गये। मरियाने फिर अपनी पत्नी के कमरे में आ गये। बच्चियों भी माँ के पास ही बैंठी रहीं। "अम्माजी, नाश्ता तैयार हो गया होगा, तुम सब जाकर नाश्ता कर लो। देकव्वे से कहीं कि वह तुम्हारी माँ के लिए आहार ला दे। आहार और चूर्ण खिल्लाने के बाद मैं भी नाश्ता कर लूंगा, फिर तुम लोग यहाँ रह सकती हो।" मरियाने ने समझाया। "वैद्यजी ने वहां कोई विशेष बात नहीं की, बाहर आपको कुछ बताया अप्पाजी?' पद्मला ने पूछा। ___"बेटी, कहा कि कुछ घबराने की जरूरत नहीं। आज कुछ प्रभावशाली दवा दी है। गोलियाँ भी दी हैं। इन दवाओं के लेने से हृदय और पित्तकोश के क्रियाशील होने में मदद मिल जाएगी। उनके पास हमेशा किसी-न-किसी को रहना चाहिए। जब प्यास लगे तब कोई ठण्डा पेय देते रहना चाहिए। इसलिए मैं वहाँ रहूँगा। तुम लोग हो आओ।" दण्डनायक ने कहा। बच्चियाँ चली गयीं। चामब्बे ने कराहते हुए धीरे-से कहा, "और भी पास आ जाइए।' मरियाने और नज़दीक आकर बैठ गये। चामब्बे ने अस्पष्ट स्वर में कहा, “मुझे राजमहल...जाना... हैं।" 292 :: पट्टपहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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