SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसी हाथ से एरेयंग प्रभु को भी दवा खिलायी थी न? तब वह हाथ का गुण कहाँ गया था? यह सब उनके भाग्य की बात है, सब पूर्व-नियोजित है। प्रभुजी की कोई दलती उम्र तो नहीं थी वह और कुछ दशाब्दियों तक जीवित रह सकते थे। यह पोय्सल राज्य का दुर्भाग्य था कि हमने उन्हें खो दिया। यह कितना बड़ा नुकसान है, इस बात को आप मुझसे अधिक समझते हैं ।" पण्डितजी ने कहा । "सच है" मरियाने ने कहा। उसे लगा कि इस वक्त पण्डित के मुँह से यह बात क्यों निकलनी चाहिए थी। जब हमारा मन कहीं अन्यत्र किसी दूसरी बाल की चिन्ता में लगा रहता है तब किसी की कड़ी प्रासंगिक बात का विपरीत अर्थ निकालना मनुष्य का स्वभाव होता है। इस पण्डित को शायद सभी बातों की जानकारी हो गयी होगी। मेरे सामने, इस वक्त यह बात क्यों कहनी थी ? व्यंग्योक्ति क्यों कहनी थी? इस बात का आज होनेवाली महासभा के साथ कुछ-न-कुछ सम्बन्ध होना चाहिए। राजमह को किराने के लिए कहनेवाले महाराज ने इस पति को शायद मेरे घर में गुप्तचरी का काम करने के लिए भेजा होगा क्या? - यों मरियाने की विचारधारा कहाँ से कहाँ बहने लगी । वह कुछ कहना चाहते थे कि इतने में पद्मला ने आकर कहा, "माँ जाग गयी।" "उनके हाथ-मुँह धुलवा दीजिए।” पण्डितजी ने कहा । "सब हो चुका है आप पधारिए।" पद्यला बोली । उसके साथ पण्डितजी और मरियाने दोनों अन्दर गये। पण्डित ने नब्ज़, जीभ, आँख का मुआयना किया और "हाँ अच्छा" कहकर अपनी दवा-दारू की पेटी खोली। चूर्ण की दो पुड़ियाँ और दवा की चार गोलियाँ दीं और कहा, "कुछ लघु आहार दे दें। उसके बाद चूर्ण की एक पुड़िया शहद में मिला चटवा दें और उसके दो घड़ी बाद इन गोलियों में से दो का चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर चटवा दें। इसी तरह मध्याह्न के बाद भी करें।... अभी मुझे राजमहल जाना हैं, आज्ञा दें।" कहकर पण्डितजी उठ खड़े हुए। "माँ बात करने में बहुत कष्ट का अनुभव कर रही हैं। गले की इन नों की ऐंठन ढीली हो सके ऐसी कोई दवा दी जा सकेगी?" पद्मला ने पूछा । "वह चूर्ण इसी के लिए दिया है, अम्माजी। इसे खाने के कुछ समय के बाद ध्वनितन्तु ठीक होते जाएँगे। कुछ प्यास ज्यादा लगेगी। डाभ पिलाइए। अब मैं चलूँ?” मरियाने की ओर मुड़कर पूछा। "अच्छा पण्डितजी," कहते हुए मरियाने वैद्य के साथ आगे बढ़े। दरवाजे तक पहुँचने पर पण्डितजी खड़े हो गये। कुछ इधर-उधर देखा । किसी को न देख मरियाने के पास आये और धीरे से सिर झुका लिया । मरियाने ने पण्डित की ओर देखकर पूछा, "कुछ चाहिए था क्या?" फिर पट्टमहादेवीं शान्तला : भाग दो : 231
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy