SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारुकीर्ति पण्डितजी चले गये 1 "अम्माजी, तुम लोग जाओ। मैं यहीं रहूँगा । दडिंगा और देकब्ने यहीं बाहर रहें।" यह आदेश देकर मरियाने पत्नी के पास बैठ गये। बेटियाँ चली गयीं । पण्डित चारुकीर्ति ने जो बलाया उसे सुन मरियाने चिन्ताग्रस्त हो गये । बेटियों के कहने से उन्हें मालूम हो चुका था। उन्होंने भी माँ को अपनी बातों से दुखाया होगा। इसके अलावा मेरी भी झिड़कियों ने उसके दिमाग पर आघात किया होगा। यही सोचकर वह व्यथित हुए। वे नरम-दिल थे, और पत्नी तथा बेटियों पर विशेष स्नेह रखते थे। वे सदा इन लोगों से ऐसा व्यवहार करते जिससे किसी का दिल न दुखे । इसका यह मतलब नहीं कि कभी-कभी गुस्से में आकर कुछ कहा न हो। कहा जरूर है। फिर उन्हें भुला भी दिया है। परन्तु एक बात में वे सदा सतर्क और कठोर रहा करते। कहीं कभी राज्य निष्ठा के विषय में कोई शंका की बात सुन पड़ती तो वह उन्हें सहन नहीं होती थी । ऐसी राजद्रोह की बात सुनते तो सुनानेवाले पर पिल पड़ते। आज भी उनकी बातें उनके स्वभाव के अनुरूप ही थीं। परन्तु यह उनकी कल्पना में भी नहीं आया था कि उनकी पत्नी का स्वास्थ्य इस हद तक बिगड़ जाएगा। वे अपनी करनी पर पछताने लगे। दण्डनायिका ने धीरे से कराहा। हाथ कुछ हिलने-डुलने भी लगे। 'हाय माँ' करती हुई उसने करवट ली। धीरे से आँखें खोलीं। अँगुली से संकेत कर पूछा, "वहाँ कौन खड़े हैं?" "मैं... कब्बा... पीने के लिए कुछ..." "सिर फटा जा रहा है... ठण्डा... पानी... सिर... पर डालो...” चामब्बे का दम घुट रहा था । मरियाने ने और नजदीक सरककर उसके माथे पर हाथ रखा। कहा, वैद्य जी ने दवा दी हैं। घबराने की बात नहीं। जल्दी अच्छी हो जाओगी - कह गये हैं । तुम्हारे जगने के बाद कुछ ठण्डा पेय देने को भी कह गये हैं। देकच्ये को बताने पर ला देगी ।" मरियाने के स्पर्श ने शायद दण्डनायिका के शरीर में कुछ गरमी पैदा की हो, उसे वह हितकारी भी लगा हो, उसने अपने पति की ओर देखा। उसकी आँखें डबडबा आयीं। वह सिसक-सिसककर रोने लगी। मरियानं ने और पास सरककर कहा, "देखो, इस तरह अगर तुम करोगी तो थक जाओगी और उससे हालत और ज़्यादा बिगड़ जाएगी। इसलिए अपने को सँभालो । अब क्या हुआ है जो तुम रोओ। 'देकच्या जाओ, छाछ ला दो ।' सुन देकब्बे जल्दी जल्दी चली गयी। #: यह "दडिंगा, जाओ, बच्चियों को बुला लाओ। कहो कि तुम्हारी माँ जग गयी 228 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy