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________________ नहीं था कि इन्हें अपस्मार की बीमारी है। ऐसा कितने दिनों के बाद होता है?" पण्डितजी ने पूछा । “जहाँ तक मेरी जानकारी है, पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।" मरियान की आवाज़ में कुछ घबराहट थी । "तो क्या यह पहली बार है" पण्डितजी ने फिर पूछा । “हाँ, छुटपन में शायद ऐसा रहा हो, न भी रहा हो, मैं नहीं जानता । प्रधानजी से पूछने पर मालूम पड़ सकता है।" मरियाने ने कहा । "कुछ जरूरत नहीं। अगर छुटपन में होता तो कभी-कभी असर दिखाई देता । आपका विवाह हुए कम-से-कम दो दशक तो बीत गये होंगे?" " करीब-करीब तीन दशक कहिए ।" "तो मतलव हुआ कि इन्हें अपस्मार बीमारी नहीं थी। कामला भी मनुष्य को कमजोर बना देता है। दण्डनायिका जी की यह बीमारी कई तरह की दवाइयाँ करने पर भी कम नहीं हुई । काढ़ा कषाय कई क़िस्म के पिलाये तब भी कम नहीं हुई। कामिला स्पष्ट दिखता हैं। मेरी समझ में जितनी दवाइयाँ इनके लिए योग्य मालूम हुई सब कुछ किया। कोई फ़ायदा नहीं हुआ। निष्कर्ष यह हुआ कि इन्हें और भी कोई ऐसी बीमारी है जो हमारी समझ के बाहर है। इनकी इस बीमारी को समझने की बहुतेरी कोशिश की फिर भी सफलता नहीं मिली। पर ऐसा मालूम पड़ता है कि इन्हें कुछ मानसिक आघात हुआ है। और मस्तिष्क पर उसका असर हुआ है। मैंने जिस चूर्ण का प्रयोग किया वह षाण्मास कल्प है जो नीम और काली मिर्च के बीज से निर्मित रसायन है। यह बहुत जल्दी दिमाग़ को सचेत करेगा। यदि दिमाग़ के अन्दर कोई कीड़े पैदा हुए होंगे तो उनका नाश कर देगा। आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं होगी। उन्हें पूरा आराम चाहिए। उनके दिमाग पर असर हो ऐसी कोई बात उनके कानों में न पड़े। यदि वे स्वयं कुछ चाहेंगी तो उसे उन्हें उपलब्ध कराएँ। उस सम्बन्ध में कोई सवाल उनसे न करें। उनके मन को और आघात न लगे ऐसा वातावरण बनाए रखें। तब उन्हें धीरज बंधेगा। मन में यदि अधैर्य होगा तो उन्हें लगेगा कि सारी दुनिया विरोध कर रही है। ऐसे विचार आते ही उनकी पुनः ऐसी स्थिति हो सकती है। मैं यह कह नहीं सकता कि यह हालत इसलिए हुई। आगे ऐसा न हो, इसका खयाल रखकर व्यवहार करना होगा। यह जावश्यक है। मैं कल सुबह स्नान-पूजा-पाठ के बाद जल्दी आऊँगा । इन्हें ठण्डा पानी इनके जागने के बाद दीजिए। छाछ, डाभ आदि दीजिए। बीच में कोई तकलीफ़ नहीं होगी, ऐसी मेरी आशा है। अगर मेरी जरूरत महसूस हुई तो कहला भेजें, मैं आ जाऊँगा" - यह कहकर पण्डितजी उठ खड़े हुए। "अच्छा।" मरियाने बोले । पट्टमहादेवी शान्तला भाग टो 227
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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