SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाकर फाँसी से लटककर मर जाएँ या फिर जहर खाकर प्राण त्याग कर दें।" मरियान ने कहा । दण्डनायक की बात पूर्णतया उसे सुनाई दी या नहीं, पर उसके बाद ही वह विस्तर पर लुक गयी। उसका हाथ अपने गले पर था। जीभ निकल आयी थी । "जितना बिगाड़ करना था वह सब कर लेने के बाद अब यों ढोंग करो तो उससे क्या लाभ? अब भुगती ।" कहकर दण्डनायक वहाँ से चले गये। उनकी बातों पर पत्नी की क्या प्रतिक्रिया हुई है, इसे देखें समझे बिना वहाँ से निकल गये थे। दवा देने का समय हो गया था, इसलिए थोड़ी ही दर में देवब्बे वहाँ दवा लेकर आयी। मालकिन को इस हालत में नहीं यह नवरा गज "मालिक, मालिक" चिल्लाती हुई वह भागी भागी आयी, मरियाने के कमरे की ड्योढ़ी से टकरानेवाली ही थी कि इतने में मरियाने दरवाजे तक पहुँचे और उसे गिरने से बचा लिया। "मालिक, मालकिन के मुँह से फेन निकल रहा हैं, और वह बेहोश पड़ी हैं।" बराहट से नौकरानी कलाती हुई बोली । "दङिगा को जल्दी वैद्य को बुला लाने के लिए भेज" कहकर मरियाने अपनी पत्नी के कमरे की ओर गये और विचित्र दशा में पड़ी अपनी पत्नी को देखा। नौकरानी कब्बे की घबरायी हुई आवाज सुनकर बेटियाँ भी घबराकर हड़बड़ाती हुई आयो । पिता को देखते ही, “पिताजी माँ..." पद्मला का गला रुँध गया । घबरावी बयों को देखकर खुद भी घबरा जाऊँ तो इन्हें दिलासा कौन देगा? यह सोच मरियाने ने कहा, “घबराने की जरूरत नहीं। यह विचित्र बीमारी है अभी वैद्यजी आएँगे, सब ठीक हो जाएगा...।" L सब वहीं रहे । वैद्य चारुकीर्ति के आने तक कोई कुछ न बोला। एक गम्भीर मौन छाया रहा कि तभी दडिगा वैद्यजी को लेकर आ गया। यदि वैद्यजी घर पर ही होते तो शायद और जल्दी आ जाते। वे राजमहल गये थे। नौकर दडिगा ने बीमार की हालत का जो परिचय दिया था उससे वैद्यजी को मालूम हो गया था कि बीमारी क्या है। इसलिए घर से निकलते समय उसके लिए आवश्यक बुकनी की पुड़िया साथ ले गये थे। जाते ही उन्होंने नब्ज देखी। नाड़ी की गति का क्रम ठीक नहीं था। कुछ न कहकर, जो पुड़िया साथ लाये थे, उसे खोलकर बुकनी सुँधायी और नाक के अन्दर फूँका। बुकनी के अन्दर जाते ही चामध्ये ने सिर इधर-उधर हिलाया । "कोई वबराने की बात नहीं। दण्डनायिका जी जल्दी सचेत हो जाएँगी। हम अब तक केवल कामिला की दवा कर रहे थे। हमें यह मालूम 226 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो L
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy