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________________ और दण्डनायक के घर का पालकी वाहक चोकी दोनों दुश्मनों के गुप्तचर हैं- यह जानकर आश्चर्य तो होना ही था। एक राज्य के महादण्डनायक ने अपने घर में शत्रुओं के गुप्तचरों को आश्रय दिया हो तो ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या राय हो सकती है? पहले अपनी ही पत्नी पर गुप्तचर रखे जाने की बात थी, जिस पर ख़ुद वहीं चकित हो गयी थी। जो निगरानी उस पर रखी गयी थी वहीं इस वामाचारी पर क्यों नहीं रखी गयी? उस नौकर चोकी के बारे में पहले से विचार किये बिना काम पर क्यों लगाया गया था? अगर कल की महासभा में यह सब सवाल पूछ लिये गये तो मैं क्या उत्तर दे सकूंगा। इस मनहूस औरत के कारण मेरी यह हालत हो गयी है। उसी ने तो कहा था कि चोकी को काम पर लगा लें। सच है, उसे आदमियों के स्वभाव, गुण आदि का पता लग भी कैसे सकता हैं, वह इतनी समझदार कहाँ है? उसकी गतिविधि और चाल-चलन पर निगरानी रखनी चाहिए थी। नवागन्तुक होने के कारण उस पर ध्यान रखना जरूरी था। मैंने बहुत भारी गलती की। इस ग़लती के लिए क्षमा मिल सकना सम्भव नहीं । पैदा होते ही मर जाता तो अच्छा होता। बुद्ध में अगुआ बनकर मैं चिणम दण्डनाथ की तरह लड़कर प्राण दे देता तो पेरी कीर्ति स्थायी हो बाजी राव की की बात जाने दो, इतने दशकों का जीवन भी व्यर्थ हो गया। अपमानित होकर मृत्यु की प्रतीक्षा करते जीने से बढ़कर दण्ड एक योद्धा के लिए क्या हो सकता है ? यह सब इस औरत के कारण हुआ। उपनयन के निमन्त्रण पत्र को छिपा रखा और क़दम क़दम पर अपमान से सिर झुकाते रहने की हालत पैदा कर दी यह सब सोचते - विचारते मरियाने का क्रोध बढ़ आया। इसी क्रोध में वे अपनी पत्नी के कमरे में जा पहुँचे । नायिका चामबे को उसी हालत में बैठे पाया। उसके मन में क्या सब बिचार चल रहा था इसकी ओर उनका ध्यान नहीं गया। गुस्से से वह आग-बबूला तो हो ही रहे थे, सो गरजकर बोले, “अब तुमको सन्तोष हुआ? हमें तुमने ऐसी हालत में ढकेल डाला। इतना अपयश जिनका नमक खाया, उन्हीं से नमक हरामी की इस मरियाने के वंशजों ने ! अब तो तुम आनन्द से रह सकती हो!" पति की इन रोष भरी बातों को सुनकर दण्डनायिका की सारी देह थर-थर काँपने लगी। धीरे से पति की ओर मुड़कर देखा । कुछ कहना चाहती थी मगर बात नहीं निकली। "क्यों, ऐसे उल्लू की तरह देख रही हो? तुम्हारा वह चोकी और वामाचारी पोय्सल राज्य के शत्रुओं के गुप्तचर बनकर आये थे इस राज्य की शत्रुओं के हवाले करने के लिए। उठो, बिस्तरा वकुचा बाँध बँधकर तैयार हो जाओ। कल महासभा में अपमानित होने से पहले यहाँ से हम दोनों किसी निर्जन प्रदेश में पष्टमहादेवी शान्तला भाग दो: 225
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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