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________________ है"-कहकर मरियाने अपने अंगरखे के छोर से उसके आँसू पोंछने लगे। चामब्बे ने अब पतिदेव को दूसरे ही रूप में पाया । देकब्बे छाछ लेकर भागी-मागी आयी। "थोड़ा-थोड़ा कर पिलाओ।" कहकर दण्डनायक कुछ पीछे हट गये। चामध्ये ने मुंह खोला; देकब्बे थोड़ा-थोड़ा करके छाछ पिलाने लगी। पहले पहल तो निगलना मुश्किल हो रहा था। निगलने में कुछ तकलीफ़ हो रही थी। तीन-चार बार गले से छाल उतरने के बाद कुछ आसानी हो गयी । वामध्ये ने बीच में देकब्बे के हाथ को रोककर सूचना दी कि अब और नहीं। "आज दिन-भर पेट में कुछ भी तो नहीं गया है। थोड़ा-सा बचा है। इसे पी लें। पट डा रहेगा। कहकर सारः छाछ, जो लाया था, पिला दिया। इतने में बेटियाँ भी यहाँ आ गयीं। देकचे पात्र खाली लेकर खड़ी हुई ही थी कि तभी "टेकच्चे, तुम और दडिगा अपना-अपना दूसरा काम देखो।" मरियाने ने कहा। वह बाहर जाकर दडिगा को मालिक की आज्ञा सुनाकर अपने काम पर चली गयी। चामब्बे ने बच्चियों की ओर देखा। बोली, "आओ।' होठ मात्र हिले । आवाज नहीं निकली। बेटियों ने देखा कि माँ का सिर विचित्र ढंग से लुढ़का पड़ा है। बेटियाँ पास आवीं तो चामब्वे ने कुछ सरककर हाथ से इशारा कर बैठने को कहा। माँ की इच्छा के अनुसार वे बैठ गयीं। मरियाने, जो उसकी बगल में बैठे थे, उठकर सिरहाने आ बैठे तो उन तीनों को बैठने के लिए जगह हो गयी। घोप्पिदेवी उसके पास बैठी थी। उसकी जाँघ पर चामब्बे ने हाथ रख अपने पति और बच्चियों को बारी-बारी से देखा। उसके निर्जीव चेहरे पर एक तरह के समाधान की भावना झलकी। अपने पति की ओर देखकर यह बड़ी मुश्किल से धीरे-धीरे बोलने का उपक्रम करने लगी, “मेरी एक आशा..." मुंह से शब्द पूरे निकल नहीं रहे थे, एक-एक अक्षर बोलकर इतना कह पायी।। ''एक क्यों? तुम्हारी सारी आशाओं को पूरी करूँगा। अब कुछ मत बोला, आराम करो। कल सुबह वैद्यजी आएंगे। तुम्हारे गले की नसों की ऐंठन ठीक करने की दवा देंगे। नसों के ढीला हो जाने पर कल जो कहना हो सो कहना।'' मरियाने ने कहा। "क...ल...राज...महल..." "इन सबके बारे में क्यों सोचती हो? अब इन विचारों को छोड़कर अपने मस्तिष्क को विश्राम दो। तुम अब आँख मूंदकर आराम से लेट जाओ। नींद आ जाएगी। अम्माजी, उस बेंच पर ख़स का पंखा है। उसे लेकर झलाओ।' मरियाने ने कहा। पहमाहादेवी शान्तला : भाग दो :: 229
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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