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________________ से नहीं कहोगी और वह क्या कहती है, सब सुन लिया करो, बाद में आगे की . सोचेंगे।" परियाने बोले। "हाँ, वैसा ही करेंगी। अभी युद्ध का समाचार..." पद्मला ने बात शुरू की। “आप लोगों तक पहुँचाने लायक कोई समाचार नहीं है। मैं जो कहता हूँ ध्यान से सुनो।" कहकर उस वापाचारी की समस्त बातें हू-ब-हू बता दी। पिता से मारी बातें सुन देटियाँ भौचक्की रह गयीं। ईष्या मनुष्य को कितना नीचे गिरा सकती है-इसके लिए इससे बढ़कर दुसरा प्रमाण नहीं मिलेगा, पिताजी।" पान ने कहा ! "तुपको तो ईर्ष्या नहीं है न?" "थी, एक समय। अब नहीं है।'' हेगड़जी ती ख़रा सीना हैं। इसे समझने के लिए मुझको ही. काफ़ी समय लगा। मनुष्यों की कसौटी पर कसकर देखने में प्रभूजी निपूण थे। वे व्यक्ति के स्थान-मान पर नहीं, उसके साँचे व्यक्तित्व का मूल्य समझते थे। यह कितना महान गुण है! यह हमने समझा नहीं। इसलिए हम ठोकरें खाकर गिरते गये। फिर भी उन्होंने क्षमा दी थी। समझो कि वे कितने उदार थे! ऐसे प्रभु का बुरा सोचा गया! अब इसका कौन-सा प्रायश्चित्त होगा?" मरियाने बोले।। "जो क्षमाशील होते हैं, वे सदा क्षमाशील ही रहेंगे। अब हमें राजपरिवार के अन्तस् में यह भाव लाने होंगे कि वास्तव में हम क्षमा योग्य हैं।" पद्मला ने कहा। "तुम्हारी माँ को वह काम करना चाहिए। बेटी, तुम लोगों का तो कोई अपराध नहीं। अपराध किया उसने। उस अपराध से तुम लोगों को बेखबर रखनेवाली तो वह है। उसे ही यह काम करना होगा। परन्तु उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।" बेटियों को माँ के व्यवहार से उसके प्रति नफ़रत की भावना पैदा होने लगी। उनकी दृष्टि में वह माँ नहीं, कोई और ही लग रही थी। सभी बेटियों मौन हो बैठी रहीं। ऐसे बँटे रहना कब तक सम्भव धा? महादण्डनायक भी अपना काम समाप्त कर लौट आये। तब तक बच्चियों की अध्यापिका भी वहाँ आ गयी थी? सब उटकर महादण्डनायक के महल की ओर चल पड़े। ___इधर घोड़े को सरपट दौड़ाले मारसिंगय्या और शान्तला घर पहुँचे और हेगड़ती माचिकलने की खबर सुनायी। सुनते ही उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बहिने लगी। कुछ देर बाद आँसू पोंछती हुई अवरुद्ध गले से बोली, "भगवान के घर न्याय नहीं रहा। अच्छों को जीवित नहीं रहने देता। दण्डनायिका चन्दलादेवी का क्या हाल होगा? उन्हें यह समाचार सुनाएं तो कैसे?" 148 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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