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आपसे राष्ट्र का हित जुड़ा हुन है। अरस मिश: देश, एक लोगों को आगे बढ़ाते रहना होगा। आपकी मनःस्थिति का पता हमें अम्माजी द्वारा चल गया है। युद्ध समाप्त होने तक इम संयम से काम लें, बाद में एक-एक कर सब ठीक हो जाएगा। महाराज अभी छोटी आयु के हैं। कभी उन्होंने जवानी के जोश में कुछ कहा हो या कह दें तो उसका ग़लत अर्थ नहीं निकालना चाहिए। फ़िलहाल अपनी वैयक्तिक बातें हम न करें। अब यह जो खबर मिली है, इसे महामातृश्री और दण्टनायिका चन्दला के पास कैसे पहुँचायी जाय? खासकर ऐसे समय में जब दण्डनायिका गर्भवती हैं। प्रसव का समय निकट है। उन्हें यह समाचार सुनाएँ भी तो कैसे?" मारसिंगय्या ने कहा।
"हाँ, मेरा ध्यान उस तरफ़ गया ही नहीं। भगवान दयालु हैं-ऐसा किस मुंह से कहें हेग्गड़ेजी? देखो न, भगवान ने ऐसा क्यों किया? इस बात को हेगड़ती जी के द्वारा महामातृश्री के पास पहुँचाने की व्यवस्था आप ही करें। वे दण्डनायिका चन्दला जी को कैसे बताएंगी-खुद महामातृश्री ही सोचकर तय करें। हम इस खबर को छुपाकर भी नहीं रख सकते। दण्डनाथ जी का पार्थिव शरीर राजपर्यादा के साथ राजधानी में आनेवाला हैं।' मरियाने ने बताया।
"राष्ट्र-गौरव के साथ राजधानी में आने के माने है कि जीत हमारी हुई है न?" कहती हुई शान्तला वहाँ आयी। दण्डनायक की बेटियों भी साथ थीं। वे कार्यागार को देखकर आयीं थीं।
“हाँ शान्तला, जीत हमारी हुई है यह तो निश्चित है परन्तु इसके लिए भी युद्ध करना है। हेग्गड़ेजी, आप इस विषय को घर पर सोचें और उस पर विचार-विमर्श कर लें, और तब उचित रीति से सन्निधान को यताएँ। आपकी बेटी साध रहेगी तो अच्छा होगा। उसकी सूक्ष्म बुद्धि को भी कुछ सूझेगा। आपने इस काागार की खबर घर पर नहीं दी, मालूम पड़ता है।" महादण्डनायक ने कहा। ___ "प्रभु की आज्ञा का पालन करना मुख्य है। जिन्हें जानना है वे जानते ही हैं। आज्ञा हो तो चलूँ: चलो अम्माजी?" मारसिंगच्या ने आदेश प्राप्त किया।
"तुम्हारा घोड़ा है, अम्माजी?" महादण्डनायक ने पूछा। "वह भी इसी घोड़े पर चलेगी।" मारसिंगय्या बोले। दोनों चले गये।
"शान्तला को भी हेग्गरेजी के साथ जाना चाहिए था, अप्पाजी? अभी तो हम सयको गुरुजी के पास जाना था!" पद्मला ने पूछा।
"गुरुजी को मैं खबर दे दूंगा। तुम लोग चिन्ता मत करो। यदि बेटी की शरूरत नहीं होती तो हेग्गड़ेजी अकेले ही चले जाते। थैठो, जो बातें तुम लोगों को अब तक नहीं बतायीं, उन्हें अब बता देता हूँ। मैं जो बताऊँ उसे अपनी अम्मा
पट्टमहादेवी शान्तला : पाग दो :: 197