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________________ "आप पढ़ चुके?" परियाने ने पूला । "अभी नहीं।" "आप पढ़ लीजिए, मैं बाद में पढ़ लूंगा। कोई खास बात है?" "लगता है कि कुछ खास बात है।" कहकर खड़े-खड़े ही मारसिंगय्या पढ़ने लगे। मरियाने एक आसन पर बैठ गये। हेग्गड़े से भी कहा, "बैठिए!" मारसिंगप्या की शायद बात सुनाई नहीं पड़ी, वे पत्र पढ़ने में मग्न थे। पढ़ चुकने के बाद तह कर मरियाने के हाथ में दे दिया। उसे लेकर मरियाने बोले, 'बैंठिए!'' . मारसिंगय्या बैठ गये। मरियाने पत्र पढ़ चुकने के बाद बोले, "ऐसा नहीं होना चाहिए था, हेग्गड़ेजी। महामातृत्री को बड़ा सदमा पहुँचेगा। प्रमु जब तक जीवित रहे तब तक चिण्णम दण्डनाथ उनके प्राण समान थे। प्रभु का उन पर सबसे अधिक विश्वास था। महामातृथी चिण्णम दण्टनाथ के विषय में बहुत आदर भाव रखती हैं। यह बात दूसरी है कि लोग इसे प्रदर्शित न किया था। व कभी अपने भा को प्रकट रूप से प्रदर्शित नहीं किया करती हैं। सगे भाई से भी ज्यादा उन पर अपनापन रखती रहीं। अब उनके न होने से बहुत बड़ा हदयाघात महामातृश्री को होगा। न, न, ऐसा नहीं होना चाहिए था। उनके बदले में मैं मर जाता तो मेरा जीवन सार्थक हो जाता।" "किस प्रसंग में कौन-सी बात आप कह रहे हैं? पोरसल राज्य के महादण्डनायक जी के प्राण राष्ट्र के लिए रक्षा-कवच की तरह हैं, अमुल्य हैं।" __ "मैं अपनी कीमत जानता हूँ। विश्वास खोये हुए पदाधिकारी का पद वरदान नहीं हेग्गड़ेजी, वह एक शाप है। पता नहीं, किसी प्रसंग में एक ग़लती हुई, उस ग़लती मे मेरे समूचे जीवन को घृणित जैसा बना दिया है।" यों ही बातें अधीरतावश दण्डनायक के मुँह से निकल गयीं। ___ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। आप अकारण गलत-सलत भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसी बातें कर रहे हैं। आयु, अनुभव और जानकारी-सभी दृष्टियों से आप इस राष्ट्र में बहुत बड़े हैं। स्वर्गवासी महाराज विनयादित्य और प्रभु एरेयंग को जिन बातों का ज्ञान था, उन सभी की आपको भी भलीभाँति जानकारी है। आपको युद्धक्षेत्र की विपरीत घटनाओं के बीच फंसा देने से राष्ट्र के खजाने को लूटने के लिए मौक़ा देने जैसी स्थिति हो जाएगी। इसीलिए आपको युद्ध में न ले जाने का निर्णय किया गया। जहाँ तक मैं जानता हूँ मेरी ये बातें अक्षरशः सत्य हैं। आप व्यर्थ ही चिन्तित न हों। आपसे राष्ट्र को बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ हैं। 196 :: पट्टमहादेयी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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