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________________ मरियाने चिन्तामग्न हो पलंग पर बैठे थे। बच्चों के आने का भान होते ही किवाड़ की ओर देखा और बोले, "आओ!" सब अन्दर आ गयीं। मरियाने ने शान्तला की ओर देखकर पाछा, 'क्यों शान्तला, किसी काम से आयी हो बेटी" "हाँ, एक जरूरी काम था। हमें शरणस्थली जाना था। वहाँ पद्मला की गुरुजी हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं।" ___ “ठीक है। मुझे भी वहाँ काम है। अब हम सब ही चलेंगे। वहाँ पादत्राण और ढाल-तलवार, खुखड़ी-खड्ग, अंकुश-भाले आदि के निर्माण का काम हो रहा है। मुझे उसकी देखभाल करने जाना है। शत्रुओं की अग्रिम सेना में हस्तिबल होने के कारण हमारे मामूली तीर उतने उपयुक्त नहीं होंगे, इसलिए इन तीरों को तेज्ञ बनाकर तैयार कराने का काम हो रहा हैं। नये क़िस्म के तीर तैयार कराये जा रहे हैं। इसके लिए उपयुक्त लौह मिश्रा भी काम चल रहा। को भी ऐसे लौह से तैयार कराने का विचार है। कल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त सामग्री तैयार हुई है या नहीं इसे भी देखना है। युद्ध अव राजधानी के पास तक पहुँच रहा है, इसलिए हथियार तैयार करने का कारखाना अब पश्चिम-दक्षिण के कोने के एक गुप्त स्थान पर स्थानान्तरित कर रखा है। हेग्गड़े मारसिंगय्या जी उसकी देखभाल के काम में लगे हैं। उन्हें तो वहीं से हिलना-डुलना तक भी नहीं। उन्हें घर से गये एक सप्ताह से भी अधिक समय हो गया होगा; है न" महादण्डनायाक मरियाने ने कहा। ___"अप्पाजी घर आये नहीं, सच है, परन्तु वे इस कारखाने की निगरानी कर रहे हैं, यह बात हमें मालूम नहीं थी।" शान्तला ने कहा। "उन्होंने घर पर नहीं बताया?" "राजाज्ञा के अनुसार यह तो बहुत ही गुप्त विषय हैं न? इसलिए नहीं कहा होगा।" शान्तला ने सहज ढंग से ही कहा। महादण्डनायक की बच्चियों ने शान्तला और कुछ चकित हुए अपने पिता की ओर देखा। महादण्डनाबक उठकर चलने लगे तो सब उनके साथ हो ली। सबके सवार होते ही घोड़ों का रथ चल पड़ा। उन्होंने रास्ते में बच्चियों को उतारकर कारखाना देखने के लिए भेज दिया और खुद हेग्गड़े से मिलने चले गये। यहाँ युद्धक्षेत्र से सन्देशवाहक आये हुए थे। हेग्गड़े मारसिंगय्या पत्र पढ़ रहे थे। सन्देशवाहक दूतों ने वह पत्र उन्हें दिया था। हेग्गड़े पत्र पढ़ ही रहे थे कि दण्डनायक वहाँ पहुँच गये। उन्हें देखते ही हेग्गड़े उठ खड़े हुए, प्रणाम किया, पत्र को पूरा पढ़े बिना ही तहकर दण्डनायक के हाथ में देने को आगे बढ़े। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 145
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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