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________________ "चाहे जो भी हो, समाचार तो पहुँचाना ही होगा। पहले महामातृश्री को समाचार से अवगत करा देते हैं। फिर जैसा कहेंगी वैसा ही करेंगे। आप दोनों भी गाड़ी से वहाँ आ जाएँ।" मारसिंगय्या ने कही। और तुरन्त उनकी गाड़ी राजमहल की ओर चल पड़ी। शान्तला जऔर माचिकब्बे के यहाँ पहुंचने से पहले ही अपने घोड़े पर सवार होकर मारसिंगय्या राजमहल में पहुंच गये थे। वह अन्तःपुर में खबर पहुँचाकर सन्निधान के दर्शन की अनुमति पा चुके थे। गाड़ी से उतरते ही माचिकच्चे और शान्तला हेग्गड़े के साथ अन्तःपुर की तरफ़ चली गयीं। रेविमय्या वहीं खड़ा था। उसकी ओर देखे बिना ही शान्तला जब तेजी से चली गयी तो वह एकदम चकित हो गया। शायद कोई पहत्त्वपूर्ण समाचार होगा दिल को झकझोरनेवाला। मन-ही-मन एसा सोचता वह भी धीरे-धीरे उनके पीछे चल पड़ा। ___ आदेशानुसार हेग्गड़े, हेगड़ती और शान्तला, तीनों अन्तःपुर के बरामदे में जा बैठे। बैठने के एक-दो क्षण के अन्दर ही महामातृश्री एचलदेवी वहीं आ गयीं। तीनों ने उठकर प्रणाम किया। "हेगड़ती जी, बहुत समय के बाद चन्दलदेवी दण्डनायिका के गर्भ हुआ। आज बहुत कष्ट झेलने के बाद पुत्ररत्न को जन्म दिया है। तुरन्त मुझसे मिलने के इरादे से बुलवा भेजा है। मैं हो आती हूँ। तब तक आप लोगों को यहाँ मेरी प्रतीक्षा करनी होगी।" एचलदेवी ने कहा। "यदि ठीक समझें तो हम भी सन्निधान के साथ चलें ।" माचिकब्बे ने कहा। "चलिए, जच्चे-बच्चे को आप भी देख लेंगी। आप लोगों के आने का समाचार मिलने से पहले यह खबर हमारे पास आयी थी। यह समाचार भी मिला कि बहुत रक्तस्राव के कारण दण्डनायिका अत्यन्त दुर्बल हो गयी हैं।' 'हे परमेश्वर !'' माचिकच्चे के मुँह से निकला। ''क्यों? क्या हुआ?" एचलदेवी ने पूछा। शान्तला और मारसिंगय्या दोनों ने हेग्गड़ती की ओर प्रश्नार्थक दृष्टि से देखा। माचिकळ्ये ने अपनी ग़लती को तुरन्त समझ लिया और कहा, "बहुत रक्तस्राव की बात सुनकर कुछ घबरा गयी।'' बात यहीं सक गयी। सब दण्डनायिका चन्दलदेवी को देखने के लिए आतर हो उटे थे। सो उनके घर जा पहुँचे। तब तक पता नहीं कितनी ही बार चन्दलदेवी ने अत्यन्त क्षीण स्वर में पूछा था कि अभी महामातृश्शी आयीं नहीं: जब ये सब प्रसूतिगृह में पहुँचे उस समय भी यही पूछ रही थीं। जब चन्दलदेवी की दृष्टि उन पर पड़ी तो उनके मुख पर पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 199
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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