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________________ सरकाते हुए बँट गये। दोनों थोड़ी देर तक तो मौन बैठे रहे लेकिन दो आत्मीय जन कितनी देर तक ऐसे बैठे रह सकते थे' कवि नागचन्द्र ने ही बात शुरू की। कहा, "श्रीमान! सुनते हैं, युवराज और राजकुमार आज ही आनेवाले हैं। इसलिए युवरानी जी ने कहला भेजा है कि अध्यापन समाप्त होने पर भी आप यहीं रहें।...इस समय दूसरा कोई कार्य नहीं था इसलिए इस ग्रन्थ को खोलकर पढ़ने बैट गया।" मुझे भः इस बात का पता नहीं था। राजमहल में पहुँचते ही मुझे इसकी सूचना मिली। वह सोचकर कि अकेले बैठे रहने से ऊब जाऊँगा, वरानी ने मुझे आपके पास भेज दिया। मेरे यहाँ आने से आपकं अध्ययन में बाधा पड़ी। मारसिंगय्या ने कहा। "वाधा पड़ने का सवाल ही नहीं उठता। आपको आश्चर्य होगा, मैंने पता नहीं, किानी वार इस ग्रन्थ को पढ़ा है। महाकवियों की उत्तम कृतियों को आप चाहे जितनी बार पढ़ें, हर वार आपको उसमें कोई न कोई नयी बात अवश्य पिल आएगी। इसलिए पग्प, रन्न, पोन्म और दुर्गासिंह जैसे रचनाकारों की कृतियों को आप चाहे सैकड़ों बार पढ़ें, ऊबेंग नहीं।" नागचन्द्र ने कहा। हमें तो इन बातों की कोई जानकारी रहती नहीं। हाँ, आप जैसे ज्ञानी अगर समझाएंगे तो थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं। मुझे बचपन में सीखने का बड़ा चाव था। परन्त हमारे जीवन का विधान ही कुछ और हो गया जिसके कारण अध्ययन की ओर विशेष ध्यान नहीं दे पाया। इसलिए आप काव्य में रस, नि आदि के बारे में कुछ बताएँगे तो हमारी समझ में कुछ नहीं आएगा। 'मैंस के आगे बीन वणाने जैसा होगा।" वहीं, जैसे शस्त्रास्त्र चालन में अपने कुशलता पायी, वैसे ही...!" ___ मुझमें और आपमें अन्तर है। आए बुद्ध न भी करें तो भी आप युद्ध का ऐसा सजीव चित्रण कर सकते हैं जैसे आँखों के सामने ही युद्ध चल रहा हो। ऐसे काव्य की रचना आप कर सकते हैं। परन्तु हम जसों को तो समझाने पर ही वह समझ में आ सकेगा।" "य: आपका मात्र भ्रम है। आप समय की कमी के कारण पर्याप्त काव्य पउन नहीं कर पाये हैं। लेकिन आप जब पढ़ने बैठेंगे तो अपने अनुभव के आधार पर ही कविकल्पना की व्याख्या करने लगेंगे।" "शायद । मगर हम इस तरह का प्रयोग कर नहीं सकते। इसीलिए इस तरह के सभी प्रयोगों की जिम्मेदारी आप जैसे मेधावी विद्वानों पर छोड़कर ही तो हम अपने इस लौकिक व्यवहार में पड़े हैं।" आप कुछ भी कहिए, हेग्गड़जी। यदि आप काव्य-पठन में आज भी लग पट्टमहादेवी शान्तला : भाग टो :: 2:5
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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