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________________ साध धर्म की शिक्षा अन पर ाक्त के मन पर कहीं अधिक और जल्दी प्रभाय पड़ता है। 'बढाराधने' सन्दर गद्य में लिखित कन्नड ग्रन्थ है। कानड़ महाफाच्यों में स्थान पाने चोग्य यह एक लेखनीय गद्य कति है। और यह दूसग है 'चामुण्डरायगण ।" 'इस गन्ध के बारे में. कभी सुना हो ऐसा स्मरण नहीं। हाँ, चापण्डगयपुराण के विषय में हमारी अम्माजी (बेटो शान्तला) को उसके गुरुजी ने वहतकल बताया था।" ___ "कवि शांकिमच्या जी ने शायद ही इस ग्रन्थ को देखा हो!" "तो म! आप सोचते है निगाही को इस प्रश, विषय में कट भी। मालूम नहीं?'' ___हाँ। कवि बाकिमव्या जो जो भी विषय ज्ञानन ग अम्माला का असाये विना नहीं रहत “चह हो उसका सौभाग्य है। यदि यह ग्रन्थ मिल सकं तो इस प्रति गकर इसे आपके पास सर्गक्षत वापस भिजवा दंगा..." पाक में प्रति हे वह " कवि नागचन्द्र चान्न । ''अगर वापस न आयी ता क्या होगा, शायद कधिजी को सी आशंका है। आपके बारे में ऐसी धारणा भला कैंस बना सकता हूँ?'' "ना ?" कर से इनका अध्ययन प्रारम्भ करने का विचार था।" गोसी बात है तो अभी न दें।" "पिर आपके लिए...?" "दलंग, अन्यत्र कहीं एक प्रति मिल जाए।" इतनी आसानी में नहीं मिलेगी। एक काम किया जा मकता है! क्या ?" ''यं स्वयं जल्दी-स-जादा इसकी प्रति तयार कर दूंगा। पर आपके पास वः पहचगी कंस:" "हाकारं ना आते जात ही रहते हैं।" "नव डॉ अगले माह ही इसको प्रति आपकाध में पहुँच जागगी ।' "इतनी जल्दी भी क्या है। आपको जब जेसा अवकाश मिले और जितना हो मक, उनकी प्रतिलिपि करते जाएं। इसमें विशेष परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं।" 'परिश्रम निरर्धक नहीं जागा, हेग्गी । सर, यह वात में ऊपर ही मोड़ दीजिए।' कहकर कवि नागचन्द्र उस ताडपत्रीय ग्रन्ध को बांधकर बग़ल में 22 :: सहमहादेवो शातला : 'पाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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