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________________ "सो क्यों?" "तब मैं अन्धी थी। अब आँखें खुल गयी हैं।" "आँखें खोल रही हैं ऐसा तो मैं विनास है ।" 'क्यों :" "क्योंकि आप महाराज को आँखें खोलकर नहीं देख रही हैं।" "मैं देख रही है। वहीं नहीं देखते।" 'एक ही बात हुई। अपने उन्हें खोलकर देखें, ऐसा नहीं बनाया ।" "मैं क्या करूँ:" "उनसे मिलिए और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके इस परिवर्तन का क्या कारण है?'' 'ये न कहें तो" ''ऐसी शंका से आपकी समस्या कभी सुलझ नहीं पाएगी। आपका मन तो अटल है न?" ''हाँ, अटल है।" 'आपसे व्यक्त रूप में तो कोई ऐसी बात नहीं हुई कि जिससे प्रत्यक्षतः महाराज के मन पर बुरा असर पड़ा हो? ऐसा नहीं हुआ है न" 'नहीं।" "इस बात को जब चाहें, जहाँ चाहें, धीरज के साथ कह सकती हैं न?" ''झूठ बोलनेवाले को डरना चाहिए। मैं अधीर क्यों होऊं, क्यों डरूँ?" "तो फिर मुझे कुछ बातें बताइए। क्या आप सच-सच बताएँगी?" अपने दोनों हाधों से शान्तला के हाथ पकड़कर वह "शान्तला, माँ की . सौगन्ध...' कहने ही वाली थी कि शान्तला ने उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया और कहा, “यों माँ की सौगन्ध नहीं खानी चाहिए। यह अच्छी बात नहीं। मुझे कोई सौगन्ध या प्रमाण की जरूरत नहीं। एक बात साफ़-साफ़ समक्ष लीजिए। किती भी बात में मैं आपकी प्रतिस्पर्धिनी नहीं। आपकी भलाई में मुझे अन्तरंग से रुचि है। इसके लिए मैं जो कोशिश कर रही हूँ उसे बताना नहीं चाहती। वह किसी दिन मालूम हो ही जाएगी। उस बात को रहने दें। मैं वास्तव में एक बहुत पेचीदा सवाल करती हूँ। माँ पर सौगन्ध खाने से रोकनेवाली में ही इस तरह का सवाल कर रही हूँ, वों आप उसका कोई अन्यथा अर्थ नहीं निकालेंगी। अताडा, आपके घर क्या कोई वामाचारी आया करते थे धीर-से पूछा शान्तला ने। 'घामाचारी को हमारे वर क्यों आना चाहिए, शान्तला?" "क्यों आना चाहिए, क्यों बुलवाना चाहिए. यह सवाल मुख्य नहीं। आने थे [H+ :: पट्टमहारंबी शान्तुल्ला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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