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क्या ? सो बताइए।" "नहीं।"
"सत्य कह रही हैं?"
"क्यों मेरी बात विश्वसनीय नहीं चाहो तो मेरी बहिन से पूछ लो ।”
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"मैं कुरेदकर पूछ रही हूँ, इससे आपको ऊबना नहीं है। आपके लिए, आपकी तरफ से मुझे बात करनी हो तो कुछ बालों के बारे में निश्चित ज्ञान मुझे होना चाहिए। इसलिए सवाल असम्बद्ध लगें, तब भी उत्तर दें।"
"टीक है।"
"आपने कहा वामाचारी नहीं आते थे, ठीक है? वामाचारी आपके घर नहीं आते होंगे। पर आपके यहाँ से कोई उसके यहाँ गये थे?"
“शान्तला, मेरे पिताजी महादण्डनायक हैं। जिसे चाहें अपने घर बुला ले सकते हैं। इसलिए हमारे यहाँ से उसके यहाँ किसी के जाने का सवाल ही नहीं
उठता।"
"आप ठीक कहती हैं मगर एक बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगी। आपको याद है कि उस दिन हमारे घर में खाद की ढेरो में से चार सोने के तावीज़ निकले थे।"
"ओह, वह... वह तो याद है । "
" आपको मालूम है कि वे क्या हैं?" "नहीं।"
"आपने घर पर किसी से पूछा कि वे क्या हैं ? "
"नहीं"
"इस सम्बन्ध में आपको जानकर कुतूहल पैदा नहीं हुआ, यह आश्चर्य की बात है । वे उस वामाचारी द्वारा निर्मित यन्त्र हैं। वे आपके घर के गोबर में कैंसे आये, किसके जरिये आये, यह राजमहल के वातावरण के परिवर्तन का कारण बना हुआ हैं। आपसे पूछने पर लगता है कि आप यह सब कुछ नहीं जानतीं। इसकी जड़ कहाँ हैं इसका पता लगाया जाए, तब यह सोचा जा सकता है कि आगे क्या करना चाहिए।"
पद्मला मौन हो गयी। शान्तला ने भी आगे कुछ कहा नहीं। उसे परिस्थिति की सन्दिग्धता मालूम हो गयी थी । पद्मला कुछ नहीं जानती, फिर भी वह इसके मूल का पता लगाने की कोशिश करेगी। जानकर बताए यही सोचकर वह चुप रही 1
हमारे घर के गोवर की देरी में वामाचारी के यन्त्रों के मिलने पर राजमहल के वातावरण को क्यों बदलना चाहिए? इन यन्त्रों का मूल कहाँ है? हमसे उनका
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो: 185