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________________ "महादण्डनायक सोच रहे हैं कि सेना को बाबगल बुलाया जाए ।" "अत्यधिक वर्षा के कारण वेदावती भरपूर बह रही है। इस वजह से पार करने की जगदेव ने नहीं की और वहीं पड़ाव डाल लिया। प्रवाह के कम होने तक प्रतीक्षा करने के बदले के किनारे-किनारे पश्चिम की ओर सेना को रवाना करें और जहाँ धार पतली हो वहाँ से इस तरफ़ आने की सोचें तो हमें उस परिस्थिति में तैयार रहना होगा नः हमने पहले सोचा था कि सखराबपण पहुँचें तो देवनूर का रास्ता नजदीक पड़ेगा - यह अन्दाज ग़लत होगा ओर इससे देवनूर के लोग शत्रुसेना की आहुति बन जाएँ तो वह अच्छी बात नहीं होगी। इसलिए चिण्णम दण्डनाथ को आदेश दें कि वहाँ की सेना को तुरन्त देवनूर भेज दें। इस काम को अभी कर देना अच्छा है। मान लें, गुप्तचरों द्वारा यह बात जग्गदेव को मालूम हो जाए और फिर वह सखरायपट्टण की तरफ़ मुड़ गया तो वहाँ के लोगों पर मुसीबत टूट पड़ेगी। इसलिए उन सब लोगों को तब तक सुरक्षित स्थान में रखने, उनके साज-सामान आदि को साथ ही ले जाने का आदेश देना उचित होगा ।" बिट्टिदेव ने बताया । तुरन्त बल्लात उठ खड़े हुए, ब्रिट्टिदेव भी उठ खड़ा हुआ । "छोटे अप्पाजी, यह सम्भव है कि वैसा हो जैसा तुमने बताया । परन्तु किसी को यह सूझा नहीं होगा- ऐसा ही लगता है। इसलिए आओ, अभी मन्त्रणा कर आगे के कार्य का निर्णय कर लें।" कहकर घण्टी बजायी । दरवाजा खुला । मन्त्रालय की ओर महाराज चल दिये। बिट्टिदेव ने उनका अनुसरण किया। ब्रिट्टिदेव की सलाह को मन्त्रणा सभा में अभूतपूर्व समर्थन मिला। इस आशय का आदेश पत्र अश्वारोही पत्रवाहक के जरिये तुरन्त सखरायपट्टण भेज दिया गया । जगदेव की सेना के आने के मार्ग पर पड़नेवाले छोटे-छोटे गाँवों के लोगों को बिट्टिदेव की सलाह के अनुसार सुरक्षित स्थानों में रखने की व्यवस्था भी की गयी । पट्टियां बच्चुपुर के जगदेव के साथ होनेवाले युद्ध के बारे में मालूम होने पर भी शान्तला ने इस सम्बन्ध में अपने पिता से अनजाने में भी कुछ नहीं कहा। यों भी हेगड़े मारसिंगय्या आजकल घर पर बहुत कम मिलते थे। एक दिन हेग्गड़ती माचिकच्चे ने भोजन के समय पूछ ही लिया, "मालिक को शायद आजकल इतना अधिक काम हो गया है कि कुछ आराम करने के लिए भी समय नहीं मिल रहा है । अथवा परिश्रम कराने में हमारे दण्डनायक बहुत आगे हैं, यही लगता है ।" - इस तरह पिता माँ और बेटी बहुत दिनों के बाद एक साथ भोजन करने बैठे थे। 17 :: पट्टमहादेवी शान्तना भाग दो 1
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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