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________________ हाथ के कौर को आधे ही में रोककर मारसिंगच्या ने हेग्गहनी की ओर एक तरह से देखा; उस दृष्टि में एक ताक्ष्णता दिखी जिसे उसने कभी अनुभव नहीं किया था। "माँ, बहुत दिन के बाद आज हम यों एक साथ भोजन करने बैठे हैं। इस वक्त बाहरी कामों के बारे में बातें क्यों छेड़ें। अब समय बदल गया है। वह एरेयंग प्रभु का समय नहीं । यह बल्लाल महाराज का समय हैं। वे तुनकमिजाज हैं। जल्दी गुस्से में आ जाते हैं। राजमहल के कार्यकर्ता को कौन बात कहनी चाहिए, कौन-सी बात नहीं कहनी चाहिए इस पर, सुनते हैं कड़ी आज्ञा और आदेश हैं। राष्ट्र को बहुत जल्दी प्रगति करनी हैं, इसलिए सभी से चौगुना काम करवा रहे हैं। है न पिताजी?" शान्तला ने अयाचित व्याख्या की। "किसने ऐसा कहा?" "आपके मौन ने। पहले तो आप राजमहल के विषयों को कह दिया करते थे। परन्तु आजकल, खासकर महाराज के वेलापुरी से दोरसमुद्र में पधारने के बाद, राजमहल की कोई बात आप नहीं कह रहे हैं। इसीलिए हमें लगता है कि महाराज ने आपके मुँह पर ताला लगा दिया है। है न माँ?" माँ की प्रतिक्रिया को भाँपने की दृष्टि से शान्तला ने उनकी ओर देखा। "ये शीघ्र-कोपी, तुनकमिजाज हैं-यह समसे किसने कहा? छोटे अप्पाजी....'' "अब तो यह बहुत अच्छा हुआ, आपके कार्याधिक्य के कारण यदि फुरसत न मिल्ले तो माँ महादण्डनायक को उसके लिए जिम्मेदार ठहराएँ, ऐसे ही आप उन्हें जिम्मेदार बनाने चले तो क्या वह ठीक होगा, पिताजी" "तो तुम्हारी यही राय है कि तुम्हारी माँ की बात असंगत है।" मारसिंगच्या बोले। __ "अब इस वक्त यह सब क्यों अप्पाजी: अब पहले सारी दुनिया को भूल जाएं, सिर्फ़ भोजन पर ध्यान दें। खुशी से भोजन हो जाए। बाद में वह बातचीत करेंगे।' शान्तला ने कहा। “हाँ, वही करें। परन्तु यह कहना होगा कि महादण्डनायक की राज-निष्ठा अद्भुत है।" कहते हुए मारसिंगय्या ने कौर उठाया। __ "जब आप ऐसा कह रहे हैं तो उन्होंने ज़रूर ही कोई महान कार्य किया होगा" ''वह सब समय आने पर अपने-आप ही मालूम हो जाएगा। अब इस बारे में बात करना ठीक नहीं है।" "मैंने कहा न, मौं। राजमहल का-नहीं, नहीं-महाराज का कड़ा आदेश है।" ''दूसरी बात न करने को कहकर फिर तुम ही ने उसे छेड़ना शुरू कर दिया पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दा :: 179
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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