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वातावरण आदि कारणों से वह रूपित होता है। उसी पुराण काल का अनुशीलन करेंगे तो हम देखेंग राक्षस-कुमारी होकर मन्दोदरी ने महापतिव्रता के रूप में ख्यात्ति पायी है तो गौतम-मुनि के वंश में जन्म लेकर जटिला ने सात-सात शादियाँ कीं। यों अनेक उदाहरण मिलेंगे। इसलिए सन्निधान वचन-भंग के दोषी न बनें, एक वार सन्निधान खले दिल से महादण्इनायक की पुत्री से मिलें और बातचीत करें तो दोनों के लिए बह हितकर होगा। यह मेरी अल्पमति की सूझ है। आज्ञा हो तो ऐसी व्यवस्था में कर दूंगा।"
“उसका नतीजा क्या होगा सो हमारा अन्तरंग जानता है। तुम्हारे पन में यह भाव होना कि हमने गलती की हैं-हम दोनों के हित की दृष्टि से अच्छा नहीं है। इसलिए अब जो बुद्ध का प्रसंग आ गया है, इसके समाप्त होने के बाद जैसा सूझे, कगे। परन्तु इस सम्बन्ध में माँ से विचार-विमर्श कर उनकी राय तुम्हें ही जाननी पड़ेगी।" ___ "माँ की इच्छा के विरुद्ध भला हम कोई काम करेंगे? कुछ भी नहीं करेंगे और कभी नहीं करेंगे। सन्निधान की इच्छा के अनुसार माताजी की राय मैं स्वयं जान लूंगा।"
"युद्ध के प्रसंग के समाप्त होने तक इस बात को लेकर हमारे मन को बिलोडना नहीं । अब केवल जग्गदेव को खत्म करना एकमात्र हमाग प्रथम कर्तव्य
___"उसमें पोसल स्त्रियों को भाग लेने की आशा है न?'' बिट्टिदेव ने फिर छड़ा।
"मों की राय तो तुम जान ही चुके हो?" 'ठीक हैं।"
बात बहीं ख़त्म हो गयी। दोनों मौन बैठे रहे। थोड़ी देर बाद महाराज बल्लाल . ने कहा, "छोटे अप्याजी! गुप्तचरनायक मादेव ने पता लगाकर बताया है कि जग्गदेव की सेना की अग्रिम पंक्ति गलसेना है। हमारी सेना में गजबल नहीं है इसलिए महादण्डनायक और प्रधान कुछ आतंकित हैं।"
"तो मतलब हुअर कि इस बात का भी फ्ला लग गया है कि उसकी सेना कहाँ तक आ पहुँची है।"
"सुनते हैं कि वह बाणऊस के मार्ग में वेदावती नदी के उस पार पड़ाव डाले
"यानी सखरायपट्टण की ओर नहीं आए।" "हाँ।' "तो वहाँ की सेना को देवनूर बुला लें तो टीक होगा?"
पट्टमहादेची शान्तला : भाग दो :: 127