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________________ "इस प्रश्न के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है। उसका जो भी नतीजा होगा, केवल हम अकेले भुगतेंगे।" "तो क्या इसमें महादण्डनाय की बंटी का त। " "घर में जो चलता है, वह बच्चों को मालूम नहीं होता?" "तो मतलब यह हुआ कि यह ऊहा मात्र है। प्रभु को और सन्निधान को जो बात मालूम हुई, वह उसी राजमहल में रहनेवाले मुझे या माँ को मालूम क्यों नहीं हुई?" ___ "राजमहल का सारा व्यवहार सदा सबको मानूप नहीं हुआ करता है। पहले से होशियार रहते हैं न?" "उसी तरह महादण्डनायक की पुत्री को उनके घर में जो हुआ सो अगर मालूम नहीं पड़ा हो तो..." "महादण्डनायक का घर राजमहल नहीं।" "फिर भी मालूम हुआ या नहीं, इस बात की तहकीकात करके ही निर्णय करना उचित होगा न?' "छोटे अप्पाजी, सन्तान माँ-बाप के ही खून को बाँटकर जन्म लेती है: "हाँ।' "तो उनके गुण-स्वभाव बच्चों में आते ही हैं न?' "आ भी सकते हैं।" "तो तुम्हारा मतलब हुआ कि नहीं भी आ सकते हैं, यही न छोटे अप्पाजी" “जन्म से कुछ गुण आ सकते हैं। सभी नहीं। वास्तव में मानव बढ़ते-बढ़ते अपने-अपने गुण और व्यवहार को पित्त कर लेता है।" "वही, जिस तरह वरदान पानेवाले भस्मासुर ने वर देनेवाले शिव के ही सिर पर हाथ रखना चाहा था।" "सन्निधान ही बताएं कि हिरण्यकशिपु का चेटा प्रहाद कैसे बनता?'' "उसकी माँ कयाद महासाध्यी धीं।" "परन्तु दुष्ट राक्षस की पत्नी होने पर भी उसकी सात्त्विकता नष्ट नहीं हुई न? गुण, व्यवहार, स्वभाव हमेशा मौं-बाप के ही जैसे होते हैं या जिस वातावरण में पाले-पोसे गये, उसी वातावरण के अनुसार प्रभावित होते हैं-ऐसा माना नहीं जा सकता। प्रत्येक मानव को उसके स्वभाव और व्यवहार को देखकर उसी के अनुसार उसका मूल्यांकन होना चाहिए । गक्षस रावण की पत्नी मन्दोदरी पतिव्रता शिरोमणियों की पंक्ति में विराजमान हैं। वह भी तो राक्षस-कुमारी है।" 'वह पौराणिक समय की बात है।" "समय क्या करेगा: मानव स्वभाव वही है। सन्निवेश, परिसर, परिस्थिति, 17 :: पट्टमहादंबी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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