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“मैं प्रकट न करूंगी। वचन देती है, यदि चाहेंगे तो...''
“जरूरी नहीं, तुम्हारे घराने की रीति सं महाराज अच्छी तरह परिचित हैं।' कहकर बिट्टिदेव ने जग्गदेव के हमले की यात संक्षेप में बता दी।
ऐसी हालत में राष्ट्र-रक्षा के लिए हमें भी मौका क्यों नहीं देना चाहिए।" ''इस कार्य के लिए अब तक स्त्रियों की सेवाएं नहीं ली गयी हैं।" "अब स्वीकार करें।''
"मैं महाराज नहीं हैं, और फिर इसके बारे में सोचने-विचारने को बुजुर्ग लोग भी तो हैं:
"आप उन्हें सूचित करें।"
बिट्टिदेव हँस पड़ा। "यह भी कहीं हो सकता है? मेरे सुझाने पर वे कहेंगे 'अभी बच्चे हो, तुम्हें क्या मालूम?' स्त्रियों की रक्षा न कर सकनेवाले इरपीक पुरुष हैं पोय्सल राज्य के-इस तरह अपमानित होने के लिए वे तैयार होंगे क्या?"
'हूँ... ऐसी बात है।" शान्तला ने कुछ व्यंग्य भरी ध्वनि में कहा।।
"व्यंग्य क्यों? 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत्ताः' -यह आर्योक्ति इस लिए ही तो हैं।" ___आर्योक्ति की बात! स्त्रियों की अन्तरंग वेदना की न पहचान सकनेवाले कटोर हदय पुरुष इसी आर्योक्ति की आड़ में स्त्रियों को कितना दुःख दे रहे हैं-इस बात को नहीं समझते।"
"तो क्या छोटी हेगड़ती को इस तरह का कोई क्लेश हुआ है?" "मैंने पहले ही निवेदन किया है कि यह मुलाकात अपने लिए नहीं।" "क्या साफ़-साफ़ नहीं बताएँगी?'
"राष्ट्र में अनेक स्त्रियाँ पुरूषों की कटोरता की शिकार हैं। दःख भोग रही हैं। घुट-घुटकर जीणं होती जा रही हैं। उन यो मारने से इस युद्ध के बहाने सैनिक शिक्षा देकर उन्हें पहली कतार में खड़ी करके वीरगति पाने का मौका दें। घुटकर मरने से इस तरह की मृत्यु कहीं अधिक स्वागत योग्य है।" ___ 'इस तरह की स्थिति किसकी और किसके कारण हुई है।" ___ इसके लिए पागला से भी ज़्यादा क्या प्रमाण चाहिए : सी और भी अनेक हो सकती हैं। उन सबको एकत्रित कर उन्हें सैनिक शिक्षण दें। और राष्ट्र की लिवेदी पर चढ़ा दें। वह महाराज से आपको कहना चाहिए।'
'शान्तला, तुम बहुत उत्तेजित हो गयी हो। यह नहीं कि मैं इस बात को नहीं जानता। महाराज को दण्डनायिका और उनकी बेटियों के बारे में पता नहीं. ऐसी बात नहीं। ऐसा मत समझो कि मैंने यह बात उनसे छेड़ी न हो। यह
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 171