SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय प्रत्यक्ष विचार-विमर्श करके ही निर्णय करने का है। व्यर्थ की खोजबीन करते रहने से यह निपटेगा नहीं। इस प्रत्यक्ष विचार-विमर्श के लिए व्यवस्था करने का निर्णय किया था कि इतने में बुद्ध की बात उठ खड़ी हुई।" । ___ "उनकी उलझन का क्या कारण है?" __ "मैं मी पूर्णतया नहीं जानता। शायद टण्डनायिका के वामाचारी के साथ सलाह कर मन्त्र-तन्त्र, जादू-टोना कराने के कारण ही ऐसा हुआ है। परन्तु मैं अधिक ब्यौरा नहीं जानता। महाराज इस बारे में कुछ कहते नहीं। लगता है कि माँ को भी यह बात मालूम नहीं ।" इतना कहकर थोड़े में बात टरका दी बिट्टिदेव ने। ____ ''इसो पृष्ठभूमि में उधर से अधांत पद्मला से कुछ जानकारी लूँ? उसका दुःख देखा नहीं जाता। वास्तव में प्रथला अच्छी है।" "एक समय उसी ने कहा था कि तुम बहुत घमण्डी हो।" "वह उसकी बात नहीं थी, किसी ने यह बात उसके मुँह में डूंसकर कहलका दी थी। उसकी गुरु देवी हैं, बहुत विचारशील हैं और ज्ञानी भी। उनके शिक्षण में शिष्य खरा सोना बनेंगे। वे अपने खुद का, किसी तरह का परिचय नहीं देती। स्वयं को एक अनाथ कहकर उस दात को टाल जाती हैं। वह महा-साध्वी और पवित्र हैं। कभी किसी ने उन्हें विचलित होते नहीं देखा, न हमने ही देखा है। उनकी शिष्या पद्मला अब पुरानी पद्मला नहीं। कुछ करना ही चाहिए।" "ठीक है, परन्तु अभी नहीं, युद्ध के बाद ही सम्भव हो सकेगा।" "मुझे तो सैनिक-शिक्षण मिला है। कम-से-कम मुझे युद्ध में ले चलिए।" "वह सब महादण्दनायक के निर्णय का विषय हैं। अगर वे माने तो हो सकता है।" "राजकुमार अगर ऐसा प्रस्ताव रखें..." “अभी इस युद्ध में महाराज की क्या भूमिका होगी-कुछ मालूम नहीं हुआ है? ऐसा लगता है कि महादण्डनायक हमें भी तुम्हीं लोगों के साथ मिला दें, यही दिखता हैं। इतने में रेविमव्या आया। दोनों अलग-अलग दरवाज्ञों से होकर भोजन करने बैठे। शान्त रीति से भोजन हुआ। बाद में सब अपने-अपने निवास की तरफ चले गये। महाराज बल्लाल के आह्वान की प्रतिक्रिया बहुत ही प्रभावोत्पादक ढंग से हुई। दोरसमुद्र के हजारों तरुण सैनिक शिक्षण के लिए आ-आकर भरती होने लगे। इधर 172 :: पदमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy