SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहकर अपनी तर्जनो से पद्मला का गाल दवाया । पद्मला ने शान्तला के हाथ को अपने हाथों में लेकर दाया मानो कह रही हो, "तुम्हारी बात सच हो और इसे सफल बनाने के लिए तुम मदद दो।" इधर उनमें आत्मीयता बढ़ती जा रही थी। पद्यला में वह भावना दृढ़ बन गयी थी कि हंगड़ती में कोई ऐसा अवगुण लश-मात्र भो नहीं जिनका आरोप उसकी माता ने उन पर लगाया था। उसके दिल में यह भावना घर कर गयी कि वे बहुत अच्छी हैं। अपनी इस भावना को पद्मला ने किसी के सामने व्यक्त नहीं किया था, तो भी उसका अन्तरंग कह रहा था कि शान्तला की सहायता सं वह अपना खोया प्रेम दुबारा अवश्य पा लेगी। उसने शान्तला की और ऐसी दीन-दृष्टि से देखा मानो कह रही हो- "शान्तला, तुम ही मेरे लिए एक सहारा हो।" शान्तला पचला की पीर पर हाथ फेरने लगी मानो वह उसे आश्वासन और सान्त्वना दे रही ही 1 फिर शान्तला ने पद्मला के पास सरककर उसके कान में कहा, "कल आप हमारे यहाँ आ सकेंगी" पाला ने मौन सम्मति दी। वार्षिकोत्सव की समारित राजमहल में शाम को भोजनोपगन्त हुई। प्रमुख-प्रमुख व्यक्ति इस भोजन के लिए आमन्त्रित थे। _ विमच्या के द्वारा अकेले बिट्टिदेव से तन्हाई में मिलने की व्यवस्था शान्तला ने कर ली थी। इस एक साल की अवधि में इस तरह की तन्हाई में मुलाकात पहली बार थी। सबका ध्यान भोजन की ओर रहा, इसलिए इस ओर किसी की दृष्टि नहीं गयी। मुलाकात अल्प समय के लिए ही सम्भव थी इमलिए संक्षेप में विचार-विमर्श कर लेना था। बिना किसी भूमिका के शान्तला ने बात शुरू की, "यह मुलाक़ात मैंने अपने लिए नहीं की है।" फिर और किसके लिए? क्या बात है?" "महाराज ने सैनिक शिक्षण के लिए युवकों का ही आह्वान किया है, युवतियों का क्यों नहीं?" __ "स्त्री-रक्षा जब गजा का कर्तव्य हैं तब कौन सा राजा होगा जो युद्ध क्षेत्र में जाकर स्वगारोहण के लिए स्त्रियों को आह्वान देगा।" "तो क्या अब युद्ध का समय आ गया है?'' तुरन्त शान्तला ने पूछा । विट्टिदेव को खेद हुआ कि युद्ध की बात अनजाने ही उनके मुंह से निकल गयी। "तो छोटी हेग्गड़ती को हेग्गड़जी ने इस विषय की जानकारी नहीं दी?" महाराज ने जब यह आदेश जारी किया है कि वात गुप्त रखी जाए तो बताएँगे भी कैसे" "तुमको बताते तो क्या ग़लती हो जाती।" 'अगर राजकमार जी की यह भावना हो तो स्वयं बता सकते हैं न" 170 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy