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________________ अप्पाजी जो द्रोही हैं क्या वे भी इसमें भाग लेंगे?" 'वह हमारी धारणा है। बह ठीक है या नहीं-कसे कहा जा सकता? उनमें जो शंका उत्पन्न हो गयी है, उसका निवारण तभी हो सकता है जब वे अपनी गरनती स्वीकार कर लेंगे। नहीं तो इस धारणा को ग़लत साबित कर दिखाना होगा। उन्हें शामिल न करेंगे तो वह कैसे हो सकेगा? सन्निधान ही सोच-विचार करें।" __ "अगर कोई ऐसा पौका मिले तभी तो सबको इकट्ठा करके इस पर चर्चा कर सकेंगे?" __ "अब तो साल बीतने को आया है। हम सबको तो दोरसमुद्र जाना ही है न? तब कोई-न-कोई प्रसंग आएगा ही।" "दोगसमुद्र जाने की बात हमने सोची नहीं। हाल में प्रधानजी और महादण्डनायक जव आये थे तब यह बात उठी थी। उस दिन तुम, उदय और माताजी सोसऊस गये थे वासन्तिका देवी की पूजा के लिए। तब प्रधानजी ने ही स्थानान्तर सम्बन्धी प्रस्ताव पेश किया था। हमने कहा कि वर्तमान व्यवस्था ही ठीक है, इसी तरह राज्यकार्य आगे बढ़े।" "प्रधानजी ने क्या कहा?" "उन्होंने ऐसी मुख-मुद्रा बनायी मानो हमसे उन्हें इस उत्तर की अपेक्षा नहीं रही हो। क्षण-भर के लिए उसी भाव में रहे 1 फिर, "जैसी आज्ञा' कहकर इस प्रस्ताव को वहीं खत्म कर दिया।" "तो क्या सन्निधान के विचार अपरिवर्तनीय है?" "परिवर्तन करने के लिए कोई कारण सूझता नहीं।" "अभी मूल सिंहासन दोरसमुद्र में हैं। साल-भर यहाँ रहने के लिए कारण भी था। आगे भी यहीं रहने का निर्णय करना हो तो सिंहासन, प्रधानजी, महादण्टनायक सबको यहीं आना होगा। उन सबके बिना सम्निधान मात्र वहाँ रहें तो दुनिया इसके कई तरह के माने लगाएगी। कहेगी राज्य-सूत्र में ताल-मेल नहीं, मन सबके एक-से नहीं, कहीं कुछ छेद या दरार है। तात्पर्य यह है कि पोसलों में भेदभाव पैदा हो गया है। यही वह समय है जब हम ऊँचे उठ सकते हैं। यह समझकर हम पर द्वष रचनेवाले चेंगाच्च आनन्दनी, सान्तरों का जग्गदेव आदि हम पर हमला कर सकते हैं। इसलिए दोरसमुद्र जाने में ही कुशल है। यही मेरी 'भावना है। माँ से चाहे विचार-विमर्श कर सकते हैं। सन्निधान उचित समझे तो चिण्णम दण्डनाथ और डाकरस दण्डनाथ से भी विचार-विमर्श कर सकते हैं।" "छोटे. अप्पाजी, हमने स्थानान्तरण की इस बात पर इस दृष्टि से विचार नहीं किया था। वर्तमान व्यवस्था में कोई पेचीदगी नहीं, काम ठीक तरह से चल रहा पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: til
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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