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________________ पहुँचाना चाहता था। कुछ-न-कुछ बहाना बनाकर बात टालता रहा। महाराज विनयादित्य की मृत्यु से भी आवश्यक समय मिल गया। अगर इस असें में पद्यला का विवाह हो जाए तो अच्छा है, यह मामला खुद ही निपट जाएगा - यही वह सोचा करता । विवाह के बारे में भाई बिहिदेव ने सांकेतिक रूप से जिन बातों की ओर इशारा किया था और कहा भी था कि उन पर अमल कर अपनी प्रतिष्ठा को बचाये रखने में गौरव भी हैं। अब उसी से पूछना चाहिए कि इससे कौन-सा गौरव मिल सकेगा? प्रभु के विरुद्ध चिन्तन करनेवाली और वामाचारी से गण्डा- ताबीज बनवानेवाली दण्डनायिका और उसकी बेटियों के बारे में उसी से पूछ लेना चाहिए कि अब क्या करना है-बल्लाल ने सोचा। महाराज को यों लगने पर विलम्ब कैसे हो सकता हैं? बिट्टिदेव और बल्लाल दोनों राजभवन के प्रकोष्ठ में मिले। किसी दूसरे विचार को न छेड़कर महाराज बल्लाल ने सीधा वही, दण्डनायक के घर की खाद में ताबीजों के निकलने और हेगड़े के घर दण्डनाविका के द्वारा खाद के साथ इनके भिजवाने आदि के साथ, ताबीजों का सारा इतिहास बताया और पूछा, “अब कहो अप्पाजी! इतना होने पर भी मुझे अपने वचन को रखना होगा? प्रभु की बुराई करने की इच्छा से वामाचारी मण्डननेपाली उपनायिका की कोख से उत्पन्न लड़की पोटसल वंश की महारानी के पद पर प्रतिष्ठित होने योग्य है?" "वचन देते वक्त जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी । तव सन्निधान की भावनाओं की शांते ही कुछ और थी। सन्निधान अगर मुझे क्षमा करें तो मैं निवेदन करूंगा कि इस विषय में खुले मन से बातचीत कर लेना ही अच्छा है, विचार-विमर्श की दृष्टि से निर्णय करने के लिए पहले की उन अनेक बातों और तब के सन्निवेशों और घटनाओं के बारे में पुनर्विचार करना होगा और समझना होगा कि तब जो कुछ हुआ वह सही है या गलत। सही है तो क्यों और ग़लत है तो क्यों? उस गलती के लिए जिम्मेवार कौन है? शान्त भाव से इन सब बातों पर विचार करना होगा। अब राज्य के प्रतिष्ठित सभी व्यक्तियों के मनोभावों से सन्निधान परिचित हो चुके हैं। इसलिए किसी तरह की कड़वाहट के बिना बात की जा सकती है।" बिड़िदेव ने कहा। “दिल ही दिल में वातों को सड़ाते रहने से तुम्हारी सलाह के अनुसार चलना अच्छा होगा।" I "यह बात सन्निघान के ही मन में नहीं, कई दूसरे लोगों के मन में भी हैं इसलिए सम्बन्धित सभी व्यक्तियों को एकत्रित कर खुले मन से इन विषयों पर विचार-विमर्श करना ही उचित होगा।” "सबको इकट्ठा कर विचार-विमर्श करना कैसे साध्य हो सकता है, छोटे 160 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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